Friday 29 June 2018

सुस्ती (Lethargy)


कई बार शरीर में स्फूर्ति (energy) नहीं रहती। शरीर एकदम थका हुआ महसूस करता है, और बहुत कमजोरी महसूस होती है। कई बार आलस इतना होता है कि हमेशा नींद आती रहती है। इसी अवस्था को लिथारजी या सुस्ती कहते हैं। तनावपूर्ण माहौल या पोषण की कमी के कारण शरीर कमजोर होने लगता है। कई बार रात में अच्छी नींद न सोने पर भी अगले दिन थका हुआ महसूस करते हैं। लेकिन ज्यादा सुस्ती शरीर के लिए बेहद हानिकारक भी है। कई बार यह सुस्ती मौत की वजह भी हो सकती है, क्योंकि ज्यादा सुस्ती से ब्रेन के सेल्स भी सुस्त होने लगते हैं और धीरे धीरे कार्य करना बंद कर देते हैं। पूरे शरीर की स्वभाविक प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, जो कई समस्याओं का कारण हो सकती है। ऐसे में शरीर को एक्टिव बनाये रखना बेहद जरूरी होता है।


सुस्ती, निम्न बीमारियों का कारण भी हो सकती है (Effects of Lethargy)

हृदय रोग (Heart Diseases):- जिस किसी भी व्यक्ति को हृदय रोग होता है या हार्ट अटैक आता है, चिकित्सक बताते हैं कि लगभग 70 फीसदी मामलों में ऐसे व्यक्ति कुछ हफ्ते पहले से ही सुस्ती महसूस करने लगते हैं। पुरूषों के मुक़ाबले महिलाओं में यह लक्षण ज्यादा नजर आते हैं।
लिवर समस्या (Liver Problem):- यदि कोई लगातार सुस्ती महसूस करे तो लीवर पर प्रभाव पड़ सकता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो या कोई ड्रग लेने की लत हो तो हेपेटाइटिस सी की संभावना रहती है। हल्का बुखार, भूख न लगना और शरीर में दर्द इसके लक्षण हो सकते हैं।

एनीमिया (Anemia):- शरीर में आयरन की कमी भी सुस्ती का कारण हो सकता है, खासकर महिलाओं में। पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, फीडिंग के बाद महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है, जिससे रंग पीला पड़ने लगता है, चिड़चिड़ाहट शुरू हो जाती है और सुस्ती छाई रहती है।
थायरॉइड (Thyroid):- कई बार थायरॉइड संबंधी समस्याएं भी सुस्ती (Susti) का संकेत हो सकती हैं, खासकर मध्यम उम्र के लोगों में। थायरॉइड ग्लैंड टी-4 और टी- 3 जैसे हार्मोन बनाती है, लेकिन मिड एज में यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

सुस्ती के लक्षण
एकांत अच्छा लगना
कमजोरी महसूस होना (Weakness in Body)
किसी काम में मन न लगना
छोटे से छोटा काम करने में चिड़चिड़ाना
हर समय नींद और आलस आना
हर समय लेटे रहने का मन होना
मन में हमेशा नकारात्मक विचार आना

सुस्ती के कारण (Causes of Lethargy)
सुस्ती का अनुभव सभी को होता है, लेकिन थोड़ा आराम करने या रात की नींद के बाद, अगली सुबह तक सुस्ती दूर हो जाती है। यदि इसके बाद भी सुस्ती बनी रहे तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। किसी भी व्यक्ति की सुस्ती का असर न केवल उसके शारीरिक बल्कि मानसिक व सामाजिक स्तर पर भी पड़ता है। सुस्ती, व्यस्त दिनचर्या, खराब जीवन शैली, बीमारियां, अनियमित व असंतुलित खान-पान व अन्य कारणों से हो सकती है। आमतौर पर अच्छी नींद लेने और और दिनचर्या में बदलाव से इस समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार चिकित्सक की सलाह लेनी ही पड़ती है।

इस समस्या के अन्य कारण (Reasons of Lethargy)
कमजोरी की वजह से।
ज्यादा तनावग्रस्त रहने से।
नींद पूरी न होने की वजह से।
शरीर में विटामिन की कमी से।
शरीर में खून की कमी की वजह से।

सामान्य उपचार

सुस्ती से बचने के उपाय (Tips to Prevent from Lethargy)
रोज योग और व्यायाम करें।
सुबह की ताजी हवा में टहलें।
तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।
खाने में विटामिन की मात्रा बढ़ाएं।
कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें।
आंवले का मुरब्बा भी शरीर को स्फूर्ति देता है।
हल्का संगीत, हल्की आवाज में सुनें। इससे भी मानसिक सुस्ती दूर होती है।
कई बार सुगंधित तेलों की मालिश से भी शरीर की सुस्ती और सुस्ती मिटाई जा सकती है।
संतुलित और पौष्टिक भोजन करें, जिसमें हरी सब्जियां, दालें, दही और मौसमी फल शामिल हों।
अपनी उंगलियों के पोरों से चेहरे की मसाज करें। ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा, जिससे व्यक्ति एक्टिव महसूस करेगा।
भागदौड़ भरी आधुनिक जिंदगी और कई तरह के तनाव, न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को थका देते हैं। थकावट हर किसी को होती है परन्तु कई लोगों को पूरे शरीर में दर्द की शिकायत रहती है। दर्द को कम करने के लिए लोग अकसर पेनकिलर ले लेते हैं। ये दवाएं तुंरत आराम देती हैं परन्तु लम्बे समय तक इसका प्रयोग नुकसान पहुंचा सकता है।
आइए जानें थकावट से बचाव के लिए घरेलू नुस्खे (Home remedies for lethargyl) 

1. ग्रीन टी (Green tea)- थकावट को दूर करने के लिए एक कप ग्रीन टी पीना बेहद प्रभावी है। नियमित रूप से ग्रीन टी पीने से वजन भी कंट्रोल में रहता है। मांसपेशियों में दर्द (muscle pain) होने पर आप ग्रीन टी बेहद लाभकारी है।
2. अदरक की चाय (Ginger tea)- अदरक की चाय कुदरती पेनकिलर के रूप में कार्य करती है। यह व्यक्ति को तरोताजा भी महसूस कराती है। तुलसी के काढ़े में अदरक मिलाकर भी पीया जा सकता है।
3. सौंफ (Saunf)- किसी पकवान में स्वाद बढ़ाने के साथ ही सौंफ सांस में ताजग़ी लाने में भी बेहद प्रभावकारी है। सौंफ का प्रयोग रसोई में ज़रूर होता है। सौंफ खाने से पेट साफ़ रहता है और आप खुद को तरोताजा महसूस करते है।
4. अजवायन (Ajwain)- अजवायन के पत्ते भी दर्द निवारक दवा की तरह काम करते हैं। यह शरीर के टूटे-फुटे की अंग की मरम्मत करने और जोड़ों के दर्द में बहुत लाभप्रद होते हैं।
5. कद्दू के बीज (Pumpkin seed)- कद्दू के बीज में मैग्नीशियम होता है, जो आलस व थकावट से लड़ने में मदद करता है। आधे घंटे की एक्सरसाइज में अगर आप थका हुआ महसूस करती हैं तो इसका मतलब है कि आपमें मैग्नीशियम की कमी है। व्यायाम के दौरान शरीर में ऑक्सीजन के निर्माण के लिए मैग्नीशियम जरूरी है। इसकी कमी की वजह से थकावट जल्दी होती है।
6. अखरोट (Wallnut)- अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड न केवल थकान और आलस से राहत देता है, बल्कि यह अवसाद से भी बचाता है। इसलिए अखरोट खाने से आपकी झपकियों की समस्या दूर होगी।
7. अनाज (Whole grain)- अनाज में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसलिए आलस और थकान मिटाने में यह मददगार साबित होता है। अनाज में कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट (complex carbohydrate) होते हैं। ये थकान से लड़ने में मददगार होते हैं।
8. लाल मिर्च (Red chilly)- लाल मिर्च में विटामिन सी पाया जाता है, जो थकान दूर करता है। लाल मिर्च से दिमाग एक्टिव रहता है और हम हमेशा तरोताजा महसूस करते हैं।
9. दही (Curd)- दही में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पाचन तंत्र (immune system) को मजबूत रखते हैं। 4 सप्ताह तक दिन में दो बार यदि दही खाया जाए तो शारीरिक और मानसिक सेहत के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और थकान कम होती है।

Thursday 21 June 2018

Summer Diet: Include Desi Ghee To Burn Belly Fat And Lose Weight Effectively


what makes ghee an amazing ingredient to lose weight and what is it that it has, which helps burn your belly fat, further giving you a flat tummy

It is a common perception that ghee or clarified butter is unhealthy and fattening, which can easily make you gain weight. Turns out, this may not be true. Pure homemade ghee, particularly made from cow's milk comes packed with essential nutrients that are required for a healthy body. Ghee is an excellent source of fat-soluble vitamins and healthy fatty acids that aid in weight loss. According to Nutritionist and Health Coach Shilpa Arora, once made, ghee contains practically no lactose and casein, making it suitable for people who cannot digest dairy. So what makes it an amazing ingredient to lose weight and what is it that it has, which helps burn your belly fat, further giving you a flat tummy.

Ghee for belly fat: Here's how it aids weight loss

Ghee, despite its reputation as an unhealthy kitchen ingredient is actually healthy if eaten in the right proportion. Here's how it helps people lose weight and burn belly fat:


Ghee is packed with essential amino acids that assist in mobilising the fat and making the fat cells to shrink in size. So, if you think your body is accumulating fat quickly, consider adding ghee to your weight loss diet.

Ghee contains conjugated linoleic acid, which is a type of omega-6 fatty acids, which when consumed aids in weight loss.

Omega-6 fatty acids can also help increase lean body mass and reduce fat mass, which in turn aids weight loss.
Similarly, the omega-3 fatty acids in ghee also help you lose inches and shed body fat.


Moreover, ghee comes packed with a range of benefits, ranging from improving digestion to preventing inflammation, which can further help you lose weight.
While ghee may be a great ingredient that may help you lose weight, you should understand that anything in excess is bad. Despite its health benefits and benefits for weight loss, ghee should be taken in moderation, considering it is high in saturated fats. It is okay to take one to two teaspoons of ghee every day in order to yield maximum benefits.


So, use ghee for burning belly fat and ensure shedding some kilos; don't forget to add a healthy diet and engage in exercises to lose weight in a healthy way.

Amla Tea For Weight Loss: How To Make This Ayurvedic Drink For Fat Burn



Highlights

1-Amla or Indian gooseberry is well known for its numerous health benefits

2-Amla contains the chromium which regulates blood glucose levels

2-Amla tea is the perfect for anyone wanting to slim down naturally

Amla, or the Indian gooseberry, is well known for its numerous health benefits. The green fruit is packed with nutrients and healing properties, due to which they find extensive use in the ancient Indian practice of Ayurveda as well. Amla, both in the fruit and powder form, finds its way into a number of our home remedies for common health as well as beauty problems. Amla is also a powerful ingredient to add to your weight loss diet. Amla juice is known to be one of the best Indian juices to consume for quick fat burn and weight loss. However, there's another powerful drink that you can easily make at home and incorporate into your diet regime - amla tea.
Amla is well known for its numerous health benefits

The sour and pungent fruit of amla is loaded with vitamin C, iron and calcium and hence, is great for the skin, hair and overall health. Moreover, it is even good for universal daily consumption, as its nature transcends the boundaries of season and body type. This is why amla tea is the perfect concoction for anyone wanting to slim down naturally. Made by boiling amla powder and ginger in water, amla tea is an all-season tea, which can be prepared and stored for everyday consumption.

Here Are Some Remarkable Benefits Of Amla, Which Make It Great For Weight Loss:
1.Rich In Antioxidants:Amla powder, which is used in making amla tea, is chock-full of antioxidants that fights inflammation. Research has time and again indicated a direct link of weight gain with inflammation.

2.Boosts Digestion:Amla powder is rich in fibre, which makes it great for boosting digestion. A healthy gut and digestion system is great for an effective weight loss.

3.Regulates Blood Sugar:Amla contains the element chromium, which effectively regulates blood glucose levels. Consuming amla may hence, prevent any sudden spikes or falls in blood sugar, thus preventing diabetes and causing weight gain.

4.Boosts Metabolism: A good metabolism is able to burn more calories effectively and amla may aide the process of increasing metabolism. It also detoxifies the body, by flushing out toxins from it.

5.Boosts Energy:Amla may speed up the process of protein synthesis, thus providing an energy boost to the body. This helps you stay focused and allows you to workout better and burn more calories.
Amla tea is the perfect concoction for anyone wanting to slim down naturally


How To Make Amla Tea For Weight LossComing to amla tea, the recipe for the drink is extremely easy to follow and the drink is ready in mere minutes. All you need for the drink is one and one-fourth cups water, just a teaspoon of coarse dried amla powder and some freshly crushed ginger. Add the amla powder and ginger to the water in a vessel and put it on a medium-flame. Let the concoction simmer for some time and take it off the heat once it comes to a boil and the water in it has reduced to one cup. Strain the drink into another vessel to filter out the sediments of amla and ginger and let it cool down a bit. Add some organic honey to the drink if you want to add sweetness to it and enjoy!

You may want to keep away from the honey if you are a diabetes patient. This amla tea can be consumed twice a day to quicken fat burn and weight loss.

Tuesday 19 June 2018

कान में संक्रमण (Ear Infection)


कान में संक्रमण (Ear Infection )

कान शरीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंगों में से एक हैं। शरीर का यह एक ऐसा हिस्सा है जिसका ध्यान इंसान सबसे कम रखता है। कान में संक्रमण अकसर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण (Bacterial Viral Infection) के कारण होता है जो कि मध्य कान को प्रभावित करता है  जिसमें छोटी हड्डियों की पहाड़ी बनी होती है। इसी में कान के परदे के पीछे हवा से भरी जगह होती है।

बड़ों की तुलना में बच्चों में कान का संक्रमण तेजी से होता है क्योंकि बच्चों के कानों की सफाई बेहद कम होती है। बच्चों के कान अधिक संवेदनशील और ज्यादा जल्दी गंदे हो जाते हैं। संक्रमण होने पर कान तो अपना कार्य शांतिपूर्वक करते रहते हैं लेकिन जब इनमें पीड़ा होती है तो वह भी असहनीय होती है।

कान के संक्रमण के प्रकार (Types of Ear Infection)
कान को तीन भागों बाहरी कान, मध्य कान और भीतरी कान में बांटा गया है। संक्रमण कान के किसी भी हिस्से में हो सकता है। मुख्य तौर पर होने वाले तीन संक्रमण निम्न हैं: 

1. बाहरी कान में संक्रमण (external ear infection)- बाहरी कान का संक्रमण आमतौर पर बाहरी कान तक ही सीमित होता है और यह बैक्टीरियल या फंगल के कारण होता है। बाहरी कान में संक्रमण के कुछ आम कारण हैं:

वैक्स संचय (Wax Accumulation): कान में कुछ वैक्स प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन समय के साथ यदि यही वैक्स बढ़ती जाए तो बैक्टीरिया और कवक के बढ़ने का स्थान बन जाती है, जहां आसानी से बैक्टीरिया बढ़ने लगते है, इस स्थिति को ग्रेन्युलोमा कहते हैं। ऐसे में कान में दर्द होता है और कान से पानी निकलने लगता है।

ओटिटिस एक्सटर्ना (Otitice externa)- बाहरी कान का यह संक्रमण ज्यादातर तैराकों में होता है। कान में किसी प्रकार के द्रव्य जैसे पानी आदि चले जाने पर ओटिटिस एक्सटर्ना होता है। कान के अंदर पहले से ही मौजूद बैक्टीरिया को यह द्रव और भी सकारात्मक वातावरण देते हैं। कान के अंदर तरल प्रदार्थ चले जाने से कान की वैक्स फूलने लगती है जिससे संक्रमण होता है।

2.मध्य कान में संक्रमण (Middle Ear Infection)- यह संक्रमण भी ओटिटिस माध्यम से आता है जो ज्यादातर नाक या गले में सर्दी, जुकाम और खांसी के कारण होता है। गले और नाक में होने वाली एलर्जी कान को भी प्रभावित करती है। इस दौरान गले और नाक के बैक्टीरिया मध्य कान में पहुंच सकते हैं और संक्रमण पैदा कर सकते हैं। दूध पीने वाले बच्चों में कान का संक्रण तेजी से होता है क्योंकि दूध कई बार मुंह से निकलकर कान की ओर बह जाता है। मध्य कान में संक्रमण भी दो प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं:

एक्यूट या तेज मध्य कान संक्रमण (Acute Middle Ear Infection)- इसमें आमतौर पर तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है। यह संक्रमण छोटी अवधि का होता है जो कि थोड़ी देखभाल के बाद ठीक हो जाता है।

जीर्ण या क्रोनिक मध्य कान में संक्रमण (Chronic Middle Ear Infection)- यह संक्रमण हफ्तों या महीनों के लिए किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। कान के इस संक्रमण को कान के दर्द, कान से किसी भी तरह के रिसाव और चिड़चिड़ेपन से पहचाना जा सकता है। यह भी तीन प्रकार का होता है-
क) इस्टेशियन ट्यूब में द्रव भरा रहता है।
ख) कान के पर्दों में छेद
ग) कान हड्डियों में कटाव

3. आंतरिक कान संक्रमण (Internal Ear Infection)- आंतरिक कान संक्रमण अमूमन ज्यादा लोगों को नहीं होता। यह कभी-कभी वायरल के दौरान हो सकता है जिसमें रक्त के माध्यम से बैक्टीरिया कान में प्रवेश कर जाते हैं जो कि कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं। यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

कान में संक्रमण के लक्षण
कान में दर्द होना
चक्कर आना
सिर दर्द
बुखार
सुनाई कम देता है

कान में संक्रमण के कारण (Ear Infection Causes)
कान में संक्रमण कई जोखिमों को पैदा करता है। संक्रमण अगर ज्यादा अंदर नहीं गया हो तो कुछ मिनट के उपचार और प्रक्रियाओं के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि यह आंतरिक स्थान तक पहुंच गया है तब ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है। कान में संक्रमण होने के कारण पीड़ित को निम्न परेशानियां हो सकती है:

* सरदर्द: कान का दर्द अकसर सर में तनाव पैदा करता है।
* बुखार: कान में दर्द के कारण तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है।
* चक्कर आना: कान का दर्द कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं।
* सुनने की क्षमता: यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

सामान्य उपचार
कान के संक्रमण से बचने के लिए सबसे जरूरी है साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त कुछ निम्न बातें पर अमल कर भी कानों के संक्रमण से बचा जा सकता है।

वैक्स की सफाई (Cleaning of the wax)- कान में अतिरिक्त वैक्स कान में बैक्टीरिया को बढ़ाकर, कान में संक्रमण पैदा करती है। कान की वैक्स को चिकित्सकों द्वारा सूक्ष्म उपकरणों से साफ कराया जा सकता है। अमूमन लोग ईयर बड से भी कान की सफाई कर लेते हैं लेकिन यदि वेक्स ज्यादा है तो उसे ईयर बड से साफ नहीं किया जा सकता।

इयर ड्रॉप्स का प्रयोग (Use of Ear Drops)- कई दफा कान की दवा डालने से भी कान के संक्रमण से निजात मिल जाती है। चिकित्सक कान दर्द के लिए इयर ड्रॉप देते हैं जिससे कान के दर्द के साथ ही वैक्स भी निकल जाती है।

टिप्स- (Tips to Prevent Ear Infection)
- सर्दी जुकाम में अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद ही खाना-पीना खाएं।
- सर्दी जुकाम में बाहर जाने से बचें। भीड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।
- धूम्रपान से बचें।
- बच्चों में टीकाकरण समय से करवाएं। उन्हें न्यूमोकोकल टीके जरूर लगवाएं।

घरेलू उपाय- (Home Remedies)
1- कान में दर्द हो तो गैंदे के फूल को पीसकर उसका रस डालने से आराम होता है।
2- नमक को गरम करके उसे कपड़े में बांध कर कान की सिकाई करने से भी कान के दर्द से आराम मिलता है।
3- खाना बनाने वाले तेल में लहसुन डालकर तेल गरम करें। इस तेल की कुछ बूंदे तीन से चार बार कान में डालें।
4- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर कान के आस पास मलने से भी आराम होता है। ध्यान रहे रस को कान के अंदर नहीं डालना है।
5- सेब के सिरके में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रूई को उसमें भिगाएं। इस रूई को कान के पीछे कुछ देर लगाकर रखें।
6- ऑलिव ऑयल को गरम करके, गुनगुने तेल की कुछ बूंदे कान में डालें।
7- गर्म पानी की बोतल से कान की सिकाई करें।
8- प्याज को गरम करके उसे मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें। प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में डालें।

आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)


आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)

आंखों में इंफेक्शन हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। ये हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु मानसून के महीने में सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। ये आंखों की ऊपरी भाग, पुतली, कॉर्निया और पलकों पर आक्रमण करते हैं जिससे आंखों में सूजन, जलन होती है। आंख जरुरत से ज्यादा लाल हो जाती है और आंखों से जरुरत से ज्यादा पानी का डिस्चार्ज होने लगता है।

आंखें ज्यादा लाल दिखती हैं और उनमें सूजन या जलन है, तो इसे नजरअंदाज नहीं करें। आंखों के विशेषज्ञ से सलाह लेकर दवाई लें। आंखों के इंफेक्शन (Types of Eye Infection) दो तरह के होते हैं एक “कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) और दूसरा कॉर्नियल अल्सर (Corneal Ulcer)। कॉर्नियल अल्सर गंभीर इंफेक्शन होता है। कॉर्निया खुले जख्म को विकसित करता है और अगर गलत तरीके से इसका उपचार किया जाए, तो इससे अंधापन भी हो सकता है। कॉर्नियल अल्सर होने पर बहुत ज़्यादा दर्द होता है, पीप या मवाद निकलता है और दृष्टि धुंधली हो जाती है। ऐसा होने पर नेत्र-विशेषज्ञ को दिखाना जरूरी होता है और ऐसे में इलाज के लिए किसी भी तरह से देरी नहीं करनी चाहिए।

आंखों के इंफेक्शन के प्रकार (Types of Eye Infection)  
आंखों के संक्रमण कई तरह के होते हैं जिसे आप लक्षण से पहचान नहीं सकते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ ही इसकी जांच कर सही इलाज करते हैं। इंफेक्शन वायरल भी हो सकता है या फिर बैक्टीरियल और फंगल भी।

कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis)
वाइरल केराटिटीस (viral keratitis)
फंगल केराटिटीस (Fungal keratitis)
ट्राकोमा (Trachoma)
इंडोफ्थेलामिटीस (Endophthalmitis)
आंखों का इंफेक्शन के लक्षण
आंखों से पानी निकलना
आंखों से मवाद निकलना
धुंधला विजन
आंखों का सूख जाना
पलकों पर सूजन
आंखों में खूजलाहट
आंखों में दर्द और जलन
आंखे लाल होना

आंखों के इंफेक्शन के कारण (Causes and Reasons of Eye Infection)
आंखों के इंफेक्शन से सबसे ज्यादा आंखों की पलकें प्रभावित होती है। पलकों के अंदरुनी हिस्से में सूजन होने से आंखों की सुंदरता तो खत्म होती ही है, समय पर इलाज नहीं कराने से घाव होने का भी खतरा रहता है। इंफेक्शन जब आंखों के अंदर आंसू की ग्रंथि को प्रभावित करता है तो सूजन से आंसू की ग्रंथि बंद हो जाती है और यह काफी दर्द करने लगता है। सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति तब होती है जब इंफेक्शन कॉर्निया को प्रभावित करती है। इसमें कॉर्नियल अल्सर का खतरा रहता है और आंखों की रोशनी तक चली जाती है।

कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis)- कंजेक्टिवाइटिस आंखों का सबसे कॉमन इंफेक्शन है जिसे पिंक आई भी कहते हैं। यह एक वायरल इंफेक्शन है जो काफी तेजी से फैलता है। अगर मां को इसका इंफेक्शन है तो नवजात को भी यह इंफेक्शन हो सकता है।

वाइरल केराटिटीस (viral keratitis)- पिंक आई की तरह यह भी एक क़ॉमन आई इंफेक्शन है जो हर्पिस के वायरस (Herpes simplex virus) के कारण होता है। यह भी काफी तेजी से फैलता है।

फंगल केराटिटीस (Fungal keratitis)- यह एक फंगल इंफेक्शन है जो आंखों में कांटेक्ट लैंस लगाने से हो सकता है। 2006 में यह इंफेक्शन उस समय चर्चा में आया था जब एक खास तरह के कांटेक्ट लैंस सोल्यूशन के इस्तेमाल से काफी लोग इस इंफेक्शन के शिकार हो गए थे। वैसे आंखों में फंगल इंफेक्शन किसी भी तरह के चोट से या फिर ऑर्गेनिक मैटर के जाने से होता है।

ट्राकोमा (Trachoma)- यह इंफेक्शन काफी गंभीर होता है और गन्दी जगह में तेजी से फैलता है। गंदगी पर पनपने वाले मक्खियों और कीड़ों के आंख में घुसने से यह इंफेक्शन होता है। ट्राकोमा आंखों के नीचे वाले पलक को संक्रमित करता है, अगर यह लंबे समय तक रहा तो कॉर्निया तक में घाव होने तक का खतरा रहता है जिससे मरीज हमेशा के लिए अंधा हो सकता है।

इंडोफ्थेलामिटीस (Endophthalmitis)- जब आंखों का इंफेक्शन आंख के अंदर काफी गहरे तक असर डाल देता है तो उसे इंडोफ्थेलामिटीस कहते हैं। यह वायरल और बैक्टेरियल दोनों तरह के संक्रमण से होता है। आंखों में गहरी चोट लगने से भी इसका खतरा रहता है।

सामान्य उपचार

देखभाल और इलाज (Care and Treatment of Eye Infection)
आंखों के इंफेक्शन का इलाज अब काफी सरल और आसान हो गया है। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप, मलहम और सेंक से कई तरह के संक्रमण का सही तरीके से इलाज हो जाता है। कई तरह के वायरल इंफेक्शन कुछ दिनों तक रहने के बाद खुद ही ठीक हो जाता है तो गंभीर इंफेक्शन होने पर डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है।

आंखों की देखभाल के सामान्य उपचार- (Tips to Prevent Eye infection)
-त्रिफला जल से आंखों को धोते रहें, काफी काम करेगा।
-इमली के बीज को चंदन की तरह पीसकर आंखों की पलकों पर लेप लगाने से काफी राहत मिलती है।
-सुबह उठते ही मुंह में ठंडा पानी भरकर मुंह फुलाकर ठंडे जल से आंखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन में तीन बार करें। यह आंखों के इंफेक्शन के लिए काफी असरदार है।
-सफेद प्याज के रस में शहद और कर्पूर मिलाकर शीशी में रख लें और इसे रात में सोते समय आंखों में डालें। आंखों के सभी तरह के इंफेक्शन में यह काफी कारगर इलाज है।
-दो रत्ती फिटकरी को बारीक पीसकर गुलाब जल में घोलकर रख लें। इस नेचुरल आई ड्रॉप की दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। यह सभी तरह के इंफेक्शन में कारगर होता है। आंख का सूजन, लाली को कम करता है और आंखों में कीच और मवाद का आना बंद हो जाता है।

अन्य टिप्स- (Other Tips to prevent Eye Infection)
-जिसकी आंखे लाल हैं उनके सामने जाने से बचें। अगर उनके सामने गए हैं तो आंखों में आंख डाल कर बात नहीं करें। उनसे मिलने के बाद तुरंत आँखों साबुन से हाथ धोएं और फिर आँखों को ठंडे पानी से धोएं।

-कंजेक्टिवाइटिस (conjunctivitis) के समय स्कूल, ऑफिस और सार्वजनिक जगहों पर एंटी वाइरल स्प्रे का छिड़काव बार-बार करते रहना चाहिए।

-अगर आप कांटेक्ट लैंस लगाते हैं तो अपने आंखों को छूने से पहले हाथों को अच्छे तरह से साफ कर लें।

-पीड़ित व्यक्ति से दूर रहें और उसका तौलिया, रुमाल, बेड, तकिया को हमेशा एंटी-सेप्टिक लिक्विड से साफ-सुथरा रखें।

आई इंफेक्शन के घरेलू उपाय (Home Remedies For Eye Infection)
आँख में होने वाला इंफेक्शन, गंदे हाथों से आँख को मसलने से, प्रदूषण से, किसी दूसरे के द्वारा इस्तेमाल किए गए काजल लगाने या चश्मा पहनने से तथा आंखों की अच्छी प्रकार सफाई न करने से होता है

जानिए आई इंफेक्शन से निजात पाने के घरेलू उपाय (Home remedies for eye infection):

1. गर्म पानी (Hot Water)- हल्के गर्म पानी के इस्तेमाल से आँख को धोएं, इससे आँखों के ऊपर जमने वाली गंदगी हट जाती है। इसके बाद रुई की मदद से आँखों को पोछें।

2. गुलाब जल (Rose Water)- गुलाब जल से आँख को धोने से आँखों का इंफेक्शन कम हो जाता है। दो बूंद गुलाब जल आँखों में डालें। इस उपाय को रोजाना दिन में दो बार करें।

3. पालक और गाजर का रस (Spinach & Carrot Juice)- पालक और गाजर का रस आँखों के संक्रमण के लिए काफी लाभदायक होता है क्योंकि इनमे पाए जाने वाले विटामिन आँखों के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। पालक के 4 या 5 पत्तों को पीसकर उसका रस निचोड़ लें। 2 गाजर को भी पीसकर रस निकाल लें। एक गिलास में आधा कप पानी लें और उसमें गाजर और पालक के रस को मिला कर पीएं। ऐसा रोजाना करने से आंख का संक्रमण कम होने लगता है।

4. आंवले का रस (Aamla juice)- आँखों में संक्रमण होने पर आंवले का रस पीने से बहुत लाभ मिलता है। 3 से 4 आंवले के फल को पीस कर उसका रस निकाल लें। एक गिलास पानी में उस रस को मिला कर पीएं। आंवले के रस को सुबह खाली पेट और रात में सोने से पहले दिन में दो बार इस्तेमाल करें। कुछ ही दिनों में आंखों का इंफेक्शन दूर हो जाएगा।

5. शहद और पानी (Honey and Water)- शहद से आँखों को धोना चाहिए। इससे आंखों को बेहद लाभ पहुंचता है। एक गिलास पानी में 2 चम्मच मधुरस को मिलाकर खुली आँखों में छपके मारें। ऐसा करने से आंखों का संक्रमण दूर होगा और आंखों की गंदगी भी साफ होगी।

6. हल्दी और गर्म पानी (Turmeric and Water)- गर्म पानी में हल्दी को मिलाकर रुई से आँखों को पोंछना चाहिए। हल्दी प्राकृतिक रूप से एंटी बैक्टीरियल और एंटी सेप्टिक गुणों से भरपूर होती है। यह आंखों की सफाई भी करती है और संक्रमण से भी दूर रखती है।

7. आलू (Potato)- आलू में प्रचुर मात्रा में स्टार्च होता है, जिसके इस्तेमाल से आँखों के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। आलू को पतले- पतले टुकड़ों में काट लें। रात में सोने से पहले उस कटे हुए आलू को 15 मिनट तक अपनी आँखों के ऊपर लगा कर रखें और बाद उसे उतार दें।

Monday 18 June 2018

अनिद्रा (Insomnia)


अच्छी नींद अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रुरी भी है। ऐसा कहा जाता है "If you cannot sleep, you cannot heal", यानि अगर आप सोएंगे नहीं तो आप सही नहीं हो पाएंगे। नींद शरीर के लिए आराम करने का सबसे बेहतरीन तरीका है। आइएं समझें अपनी नींद को करीब से।
क्यों जरूरी है नींद (Importance of Sleep)
हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद बहुत ही जरूरी है। इंसान के शरीर को नींद की उतनी ही जरूरत है जितनी खाने पीने की। पर्याप्त नींद नहीं लेने से हमारी कार्यक्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है।

हर उम्र में शरीर की नींद की अवधि की जरूरत बदलती है। नवजात शिशु 18 घंटे तक सोते हैं तो वयस्कों को औसतन आठ घंटे की नींद की जरूरत होती है।

पर्याप्त नींद के अभाव का सीधा असर हमारे शरीर की चयापचय प्रक्रिया (Metabolic Process) पर पड़ता है और इससे मधुमेह (Diabetes), वज़न का बढ़ना (Weight Gain), उच्च रक्त चाप (High Blood pressure) जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

अनिद्रा की समस्या (About Insomnia or sleeplessness)
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार हफ्ते में तीन बार पूरी रात न सोने को नींद न आने की बीमारी यानि अनिद्रा (Anidra) समझा जाता है। अनिद्रा (Insomnia), दुनिया भर की आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है, जो किसी भी उम्र के पुरुषों और महिलाओं में हो सकती है। इन दिनों लोग विभिन्न प्रकार की अनिद्रा से पीड़ित हैं।

अल्पावधि अनिद्रा (Short term Insomnia) 

अल्पावधि या तीव्र अनिद्रा, अनिद्रा का एक आम प्रकार है, यह कुछ दिनों के लिए होती है और कुछ दवाओं या जीवनशैली में किये गये मामूली बदलावों से होती है।

चिरकालीन अनिद्रा (About Chronic Insomnia)
अगर अनिद्रा की समस्या काफी लंबे समय के लिए रहे तो यह आपके जीवन को प्रभावित कर सकती है। अगर एक व्यक्ति 30 दिनों से भी अधिक समय तक के लिये ठीक से ना सो पाए तो इसका अर्थ यह है कि वह चिरकालीन अनिद्रा (Chronic Insomnia) से पीड़ित है।

एक शोध के अनुसार, जो लोग कम सोते हैं या फिर अक्सर देर से सोते हैं, अन्य लोगों की तुलना में उनका नजरिया काफी नकारात्मक होता है और वे चिंताओं से घिरे रहते हैं। अमेरिका के बिंघमटन विश्वविद्यालय के जैकब नोटा का मानना है, ‘जो व्यक्ति नकारात्मक विचारों से परेशान है और सही समय पर नहीं सोता है तो उसे गहरी नींद नहीं आएगी'।

अनिद्रा की मुख्य वजह टेंशन और तनाव को माना जाता है। लेकिन अनिद्रा के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जो शारीरिक या मानसिक या दोनों तरह के हो सकते हैं। आइयें जानें अनिद्रा की कुछ खास वजहों को:

अनिद्रा का शारीरिक कारण (Causes of Insomnia)
शयनकक्ष में बहुत शोर हो या बहुत ठंडा या बहुत गर्म हो

बिस्तर छोटा हो या आरामदायक ना हो

आपकी सोने की कोई नियमित दिनचर्या न हो

आपके साथी का सोने का समय या तरीका आपसे अलग हो

आपको पर्याप्त थकान न होती हो या आप पर्याप्त परिश्रम न करते हों

आप बहुत देर में खाना खाते हों

आप भूखे पेट ही सोने के लिए चले जाते हों

सोने से पूर्व चाय, काफी (जिनमें कैफीन नामक रसायन होता है), सिगरेट या शराब का सेवन करते हों

अनिद्रा का मानसिक कारण (Reason of Insomnia)
आप भावनात्मक समस्याओं से जूझ रहे हों
आपको रोजगार सम्बन्धित परेशानियां हों
आप किसी उलझन और चिन्ता में हों
आप बार- बार एक ही समस्या के बारे मे सोचते हों
आपको कोई रोग, दर्द या बुखार हो

अनिद्रा का उपचार (Insomnia Treatment)
सामान्य उपचार
नींद आने की समस्या से निजात पाने के लिए अकसर लोग नींद की गोलियों का सेवन करते हैं जो सही चीज नहीं मानी जाती। 
नींद ना आने (Sleep Disorder) की एक मुख्य वजह तनाव भी हो सकता है। अच्छी नींद पाने के लिए कुछ उपाय निम्न हैं:

अनिद्रा रोकने के उपाय (Remedies and Treatment of Insomnia)
शारीरिक परिश्रम शरीर को थकाता है और आराम की जरूरत बढ़ाता है। अतः नियमित खेलकूद या टहलना हमारे लिए लाभदायक है, इससे शरीर चुस्त रहता है और थकान होने के कारण नींद अच्छी आती है।

बिस्तर एवं शयन कक्ष आरामदायक हो, बहुत ठंडा या गरम न हो। इस बात का ध्यान रखें कि गद्दा आपके लिए उपयुक्त हो।

सोने से पहले धीमा संगीत भी शरीर को आराम देता है और सोने में मदद देता है।

सोते समय सिर के नीचे छोटा तकिया रखें। एक तकिया अपने घुटनों के नीचे और दूसरा अपने घुटने और जांघ के बीच रखें। इससे शरीर का वजन निचले हिस्से की ओर आएगा और आप आराम से सो सकेंगे।

सोने से एक घंटा पहले कमरे की लाइट हल्की कर लें।
सोते समय अच्छी और सकारात्मक बातें सोचें।

रात में सोने से पहले दूध पिएं, जिससे अच्छी नींद आएगी। चाय-कॉफी की मात्रा को सीमित करें और दिन भर में दो-तीन बार से ज्यादा इनका सेवन न करें।

समय पर सोने और जागने की आदत डालें।

अच्छे दोस्त बनाएं। अकेलेपन से दूर रहें।

यदि कोई चीज़ आपको परेशान कर रही है और आप उसके बारे में सही तरीके से नहीं सोच पा रहे हों तो अपनी समस्या को सोने से पहले कागज़ पर लिख लें और स्वयं से कहें कि कल आप इस समस्या से निपटेंगे।

अगर आप सो नहीं पाते हैं तो उठ जाएं और कुछ ऐसा करें जिससे आपको हल्का महसूस हो, जैसे – पढ़ना, टीवी देखना या हल्का संगीत सुनना और जब आप थकान महसूस करें तो फिर से सोने जाएं।

अनिद्रा का घरेलू उपचार (Insomnia Home Remedies)
अगर सोना आपके लिए जरुरी काम बन जाए तो समझिए कुछ गड़बड़ी है। अनिदा आम कामकाजी भारतीयों की शिकायत बनती जा रही है। इंसोमेनिया कोई बीमारी नहीं बल्कि खराब जीवनशैली से उत्पन्न हुई नींद संबंधी समस्या है। इंसोमेंनिया अगर लंबे समय तक रहे तो यह गंभीर बीमारी का रुप ले सकती है।

डॉक्टर कहते हैं कि बेहतर स्वास्थ्य और जिंदगी के लिए एक आम इंसान को 7 से 8 घंटे अवश्य सोना चाहिए। लेकिन नौकर-धंधे का प्रेशर, व्यस्त दिनचर्या और आगे भागने की होड़ में हम नींद को ही भूल जाते हैं। बाद में जब नींद काफी सताने लगती है तो हम स्लीपिंग पिल्स (Sleeping Pills) लेने लगते हैं। लेकिन स्लीपिंग पिल्स लेने से बेहतर है कि हम कुछ ऐसे आसान घरेलू इलाज करें जिससे शरीर की थकावट दूर हो और हमें बेहतर नींद मिल सके।

अनिदा को भगाने के घरेलू इलाज (Home Remedies for Insomenia)
हरी साग और सब्जी ज्यादा मात्रा में खाएं (Eat green vegetables more)

हरी साग और सब्जी शरीर के लिए ही नहीं नींद के लिए भी जरुरी है। खासकर जिन सागों के पत्ते बड़े हों और उसमें लिसलिसापन हो तो यह नींद आने में काफी मदद करता है। पोरो और पालक के साग नियमित रुप से खाएं, इससे बेहतर नींद आएगी।

मैग्नीशियम और कैल्शियम (Magnesium and calcium)
मैग्नीशियम और कैल्शियम दोनों को ही नींद बढ़ाने वाली केमिकल कही जाती है। जब यह दोनों साथ में ली जाए तो और असरदार होती है। मैग्नीशियम खाने से दिल की बीमारी का खतरा भी कम हो जाता है। रात में 200 Mg मैग्नीशियम(ज्यादा मात्रा न लें, डायरिया हो सकता है) और 600 mg  कैल्शियम निश्चित रुप से खाएं, बेहतर नींद आएगी।

जंगली सलाद पत्ता या काहू (Wild Lettuce)
अगर आपको टेशन, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द की शिकायत रहती होगी तो आप जंगली सलाद पत्ता को जरुर जानते होंगें। यह शरीर की थकावट, डिप्रेशन और अनिदा में भी काफी असरदार होती है। सोने से पहले इसे पैरों में 30 से 120 मिली ग्राम लगा लें, थकावट गायब हो जाएगी और चैन की नींद आ जाएगी।

हॉप्स (Hops)
यह एक प्रकार का जंगली पौधा है जिसके फल का उपयोग शराब (बीयर) बनाने के काम में आता है। अनिदा, टेंशन और डिप्रेथन के मरीजों को इसके फल का रस पिलाई जाती है ताकि उन्हें आराम की नींद आ सके।

एरोमाथेरेपी (Aromatherapy)
सुगंध का मस्तिष्क से गहरा संबध है। बहुत सारे लोग अपने बेड पर तकिए के नीचे चमेली के फूल रख कर सोते हैं। कई लोग अपने बालकनी में रजनीगंधा या इसी तरह के सुगंधित फूलों के पौधे लगा कर रखते हैं ताकि इसके सुगंध से रात में बेहतर नींद आ सके। लेवेंडर के फूल भी काफी असरदार होते हैं अनिदा के मरीजों के लिए। तकिए के नीचे इसके फूल रख देने से सुगंध पूरे कमरे में फैल जाती है और नींद बेहतर आती है।

योग और ध्यान (Yoga or meditation)
योग और ध्यान को नियमित अभ्यास में लाएं। योग में ज्यादा कठिन आसन नहीं करने हैं, साधारण आसन जिससे मन को शांति मिले वही करें। बेड पर जाने, पहले 5 से 10 मिनट ध्यान करें। ध्यान के दौरान कहीं भटके नहीं और मन को सिर्फ अपनी सांस पर एकाग्र करें। रात में बेहतर नींद आएगी।

एल- थियानीन (L-theanine)
ग्रीन टी में एल –थियानिन नामक एमीनो एसिड पाई जाती है। इसे दिन में पीने से चुस्ती और ताजगी छाई रहती है मन में और रात में पीने से गहरी नींद आती है।

पीले दाँत (Yellow Teeth)


दांत सिर्फ हमें भोजन चबाने में ही मदद नहीं करते, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं। साफ, स्वस्थ व सुंदर दांत चेहरे का आकर्षण होते हैं। लेकिन अगर दांत पीले हो  तो यह शर्मिंदगी का भी कारण बन सकते हैं।

दांतो का पीलापन (Yellow Teeth​) 

दांतों का पीलापन आज के समय में एक आम समस्या है। पीले दांतों के कारण न सिर्फ चेहरे की खूबसूरती प्रभावित होती है, बल्कि आत्मविश्वास में भी कमी आती है।
दांतों के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही कई बीमारियों को आमंत्रित करती हैं।
दांतों की नियमित सफाई न करना पीलेपन का कारण हो सकता है। विटामिन डी की कमी दांतों की चमक खत्म कर देती है।

पीले दाँत के लक्षण
पीले दाँत

दांतों में पीलापन आना हमारे गलत रहन-सहन के कारण तो कई बार साफ-सफाई ना रखने के कारण होता है।
कुछ अन्य कारण भी हैं  जिनके कारण दांत पीले होते हैं, जैसे:

पीले दांतों का मुख्य कारण (Causes of Yellow teeth)

तंबाकू, गुटका, शराब आदि के ज्यादा सेवन करने से दांत पीले हो सकते हैं। 

कुछ लोगों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ दांतों पर प्लैक की परत चढ़ती जाती है। इससे भी दांत पीले दिखने लगते हैं।

ज्यादा मात्र में चाय, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक का सेवन करने से भी दांत पीले होने लगते हैं।

फ्लोरोसिस : देश के कई शहरों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण दांतों का रंग बदरंग हो जाता है। उनमें ऊपर पीले एवं सफेद चिकत्ते दिखाई पड़ते हैं।

सामान्य उपचार
अगर दांतों को साफ करने के बाद भी दांतों से पीलापन ना जाए तो निम्न उपचार अपनाने चाहिए:

व्हाइट्नर, शाइनर और विशेष केमिकल्स के जरिये दांतों की चमक आसानी से लौटाई जा सकती है।

डेंटल ब्लीचिंग से दांतों का पीलापन, पीले-लाल धब्बे, गुटका, तंबाकू आदि के दाग आसानी से खत्म किए जा सकते हैं।

पीले दांतों को सफेद करने का घरेलू उपचार, बेकिंग सोडा है।गरमग पानी में बेकिंग सोडा मिला कर उससे कुल्ला (Gargle) करें। जब मुंह से पानी बाहर निकालें तब अपने दांतों को उंगलियों से रगड़ें, इससे दांत चमक जाएंगे।



दांतों को स्वस्थ रखने के लिए फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट और मुलायम ब्रश से दिन में दो बार दांत साफ करने की आदत डालें।

इसके साथ जीभ की सफाई भी करें, क्योंकि बैक्टीरिया ज्यादातर यहीं पनपते हैं।

दिन में एक बार फ्लॉस भी करें। इससे दांतों के बीच फंसे भोजन के टुकड़े निकल जाते हैं।

अधिक गर्म चीजें न खाएं।

ज्यादा कड़क ब्रिसल वाले ब्रश से दांत साफ न करें।

माँसाहारी खाना खाने के बाद कुल्ला जरूर करें। इससे दांतों में फंसे रेशे भी निकल जाएंगे और गंध भी।

दांतों में तकलीफ न हो, तब भी साल में एक बार दांतों का चेकअप जरूर कराएं।

कुछ भी खाने-पीने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें।
ज्यादा पुराना ब्रश मसूड़ों और दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए हर तीन महीने में ब्रश बदल लें।

दांतों का पीलापन दूर करने के घरेलू उपाय
सफेद और चमकते दांत किसी की भी पर्सनेलिटी में निखार ला सकते हैं। बहुत से लोग पीले दांतों के कारण लोगों के सामने हंसने से बचते हैं या मुंह पर हाथ रखकर हंसते हैं। दांत ज्यादातर उम्र के कारण, दांतों की ठीक से सफाई न होने के कारण, बहुत ज्यादा चाय या कॉफी पीने के कारण अथवा तंबाकू और सिगरेट पीने के कारण पीले हो जाते हैं।

कभी कभी किसी बीमारी के कारण भी दांत पीले हो जाते हैं। हालांकि पीले दांतों को सफेद बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है। थोड़ी सी मेहनत से आप पीले दांतों को सफेद बना सकते हैं। आइए आपको कुछ घरेलू नुस्खे बताते हैं जो आपके दांतो की सफेदी और चमक को बनाए रखेंगे।

1. बेकिंग सोडा- (Baking Soda)
बेकिंग सोडा दांतों को सफेद बनाने का सबसे आसान तरीका है। यह दांतों से प्लाक को खत्म करके दांतों की सफेदी और चमक बनाए रखता है।

कैसे उपयोग करें
- रोज ब्रश करते समय अपने पेस्ट में थोड़ा सा बेकिंग पाउडर डालें और ब्रश करें। दांतों की सफेदी लौट आएगी।
- एक कप पानी में बेकिंग सोडा और हाइड्रोजन पर ऑक्साइड (hydrogen peroxide) मिलाकर माउथ वॉश (mouthwash) की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

2. संतरे का छिलका- (Peel of Orange)
संतरे के छिलके से रोज दांतों की सफाई करने से कुछ ही दिनों में पीले दांत चमकने लगेंगे।

कैसे उपयोग करें
- रोज रात को सोते समय संतरे के छिलके को दांतों पर रगड़ें। संतरे के छिलके में विटामिन सी (vitamin c) और कैल्शियम के साथ माइक्रोऑर्गेनिज्म (micro organism) होता है जो दांतों की मजबूती और चमक बनाए रखता है।

3. स्ट्रॉबेरी- (Strawberry)
स्ट्रॉबेरी में भी विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है जो कि दांतों को सफेद बनाने में सहायक है।

कैसे उपयोग करें
- स्ट्रॉबेरी के कुछ टुकड़ों को पीसकर, इस लेप को दांतों पर लगाकर मसाज करें। इसे दिन में दो बार करने से कुछ ही दिनों में पीले दांत सफेद होने लगते हैं।
- बेकिंग सोडा और स्ट्रॉबेरी के पल्प को मिलाकर भी दांतों पर रगड़ने से दांतों का पीलापन खत्म होता है।

4. नींबू- (Lemon)
नींबू के प्राकृतिक ब्लीचिंग (natural bleach) के गुण दांतों पर भी असर दिखाते हैं। पीले दांतों के लिए नींबू के छिलके को दांतों पर रगड़ा जा सकता है, या नींबू के पानी से गरारे भी किए जा सकते हैं।

कैसे उपयोग करें
- नींबू के साथ नमक मिलाकर दांतों की मसाज करें।
- दो हफ्तों तक रोजाना दो बार करने से दांत चमकने लगेंगे।

5. नमक- (Salt)
नमक को पुराने समय से ही दांतो की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह दांतों के खोए मिनरल्स लौटाता है जिससे दांतों का सफेद रंग बना रहता है।

कैसे उपयोग करें
- रोजाना सुबह टूथपेस्ट की तरह नमक को दांतों की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। नमक को चारकोल में मिलाकर भी दांतों की सफाई की जा सकती है जिससे दांत सफेद होते हैं।
- नमक और बेकिंग पाउडर मिलाकर भी मंजन तैयार किया जा सकता है।

6. तुलसी- (Basil)
तुलसी में भी दांतों को सफेद बनाने का गुण होता है। इसके साथ ही तुलसी पायरिया आदि से भी दांतों की रक्षा करती है।

कैसे उपयोग करें
- तुलसी के पत्तों को सुखाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को रोजाना इस्तेमाल करने वाले टूथपेस्ट में मिलाकर दांतों की सफाई करें।
- तुलसी के पत्तों का पेस्ट बनाकर उसमें सरसों का तेल (mustard oil) मिलाएं। इस पेस्ट से दांतों की सफाई करने पर भी बहुत फायदा होता है।

7. सेब- (Apple)
सेब को डाइट में शामिल करने से भी दांतों की सफेदी लौटाई जा सकती है। सेब की क्रंचीनेस दांतों को प्राकृतिक तौर पर स्क्रब करती है। रोजाना एक या दो सेब जरूर खाएं और खूब चबा चबा कर खाएं। इसी तरह गाजर और खीरा भी कच्चा खाने से दांत सफेद तथा मजबूत बनते हैं।

Friday 15 June 2018

गठिया (Gout)

गठिया (Gout) या वातरक्त एक सामान्य रोग है जिसमें रोगी के एक या कई जोड़ों में दर्द, अकड़न या सूजन आ जाती है। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और चुभन जैसी तेज पीड़ा होती है। यह रोग रक्त में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से होता है,जिसका प्रमुख कारण यूरिक एसिड अपचयन (Metabolism) से है।
गठिया क्या है (What is Gout)
जोड़ हड्डियों से बने होते हैं जो एक कैप्सूल यानि संपुट में होते हैं। इस कैप्सूल के ऊतक (Tissue) एक प्रकार का चिकना द्रव्य बनाते हैं जिसे सायनोवियल फ्लूड (Sinovial Fluid) कहा जाता है।
इसी फ्लूड की सहायता से उंगलियों के जोड़ आसानी से काम करते हैं। इसी द्रव्य पर कैप्सूल के अंदर के ऊतक भी निर्भर करते हैं। गठिया (Gathiya) की समस्या उस समय पैदा होती है जब शरीर बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनाने लगता है और उसके कण कैप्सूल के अंदर पहुंचने लगते हैं।
कैसे फैलता है गठिया (Stages of Gout)
गठिया (Gathiya) की शुरूआत सबसे पहले पंजों से होती है। अधिकांश रोगियों (लगभग 50%) में पैर के अंगूठे के जोड़ (मेटाटारसल-फेलेंजियल जोड़) में तकलीफ होती है। तब इसे पोडोग्रा (Podagra) भी कहते हैं। कुछ समय के बाद इसके कण शरीर के दूसरे जोड़ों तक फैल जाते हैं और यही दर्द बढ़ता हुआ कोहनी, घुटनें, हाथों की उगुंलियों के जोड़ों और ऊतकों तक पहुँचता है।
गठिया के लक्षण (Symptoms of Gout)
जोड़ों में रात को अचानक बहुत तेज दर्द होता है और सूजन आ जाती है। जोड़ लाल और गर्म महसूस होता है। साथ में बुखार और थकावट भी हो सकती है। गठिया का दौरा अमूमन 5-7 दिनों में ठीक हो जाता है। गठिया 75 प्रतिशत वंशानुगत होता है और यह ज्यादातर पुरूषों में पाया जाता है।
गठिया रोग के लक्षण (Risk Factors of Gout)
गठिया के रोगियों को रक्तचाप, डायबिटीज, मेटाबोलिक सिन्ड्रोम, वृक्क रोग और हृदय रोग का खतरा अधिक रहता है। यदि उपचार नहीं किया जाये तो यह धीरे-धीरे दीर्घकालीन और स्थाई रोग बन जाता है।
जोड़ों की सतह क्षतिग्रस्त होने लगती है। अक्षमता और अपंगता बढ़ जाती है। साथ ही शरीर में कई जगह (जैसे कान, कोहनी आदि) यूरिक एसिड जमा होने से दर्दहीन गांठें (Tophi) बन जाती हैं। यदि गुर्दे में पथरी बन जाये तो स्थिति और जटिल हो जाती है। ऐसे में किडनी खराब (Kidney Failure) होने का खतरा बढ़ जाता है।
गठिया के लक्षण
कभी-कभी पैरों, सिर, टखने, घुटनों, जांघ और जोड़ों में दर्द के साथ-साथ सूजन आना
कभी-कभी बुखार की शिकायत
किसी अंग का शून्य हो जाना
खाया भोजन न पचना
जोड़ों को छूने तथा हिलाने में असहनीयदर्द होना
शरीर में खून की कमी होजाना आदि गठिया के मुख्य लक्षण हैं
शरीर में भारीपन

गठिया के कारण
गठिया रोग को जीवनशैली से जुड़ा रोग माना जाता है। अधिकांश मामलों में इसके मुख्य कारण निम्न होते हैं:

जीवनशैली (Causes of Gout)
>12% रोगियों में गठिया (Gathiya) का मुख्य कारण आहार को माना गया है। शराब , फ्रुक्टोज-युक्त पेय, मांस, मछली के सेवन से गठिया का जोखिम बढ़ता है।
>चयापचय में आई खराबी
>मोटापा

कई रोग भी ऐसे होते हैं जिनकी वजह से गठिया रोग हो जाता है। यह रोग निम्न हैं:
~गुर्दे की बीमारी
~मेटाबोलिक सिंड्रोम
~पॉलीसायथीमिया
~लेड पॉयजनिंग
~वृक्कवात
~हीमोलिटिक एनीमिया
~सोरायसिस और अंग प्रतिस्थापन (Organ Replacement)
~मूत्रवर्धक दवाइयां (हाइड्रोक्लोरथायडाइड) का सेवन करने से भी गठिया हो सकता है। 
~नायसिन, एस्पिरिन, साइक्लोस्पोरिन और टेक्रोलिमस आदि दवाइयां भी गठिया रोग का कारण बन सकती हैं।

सामान्य उपचार
गठिया रोग का उपचार (Treatment of Gout)
गठिया से बचाव का सबसे बढ़िया उपाय है स्वस्थ जीवनशैली अपनाना। गठिया होने पर निम्न बातों का ध्यान भी रखना चाहिए:
बार-बार पड़ने वाले दौरों (Attack) को रोकने के लिए डॉक्टर की सलाह से यूरिक एसिड कम करने की दवाइयां ले सकते हैं।
साथ में दर्द और सूजन कम करने के लिए नॉन-स्टीरॉयडल एंटीइन्फ्लेमेट्री दवाइयां (NSAIDs), कोलचिसीन और स्टिरॉयड्स भी ले सकते हैं। यह दवाइयां प्रायः 1-2 हफ्ते तक दिये जाते हैं।
गठिया के रोगियों को प्रोटीनयुक्त आहार से परहेज करना चाहिए। शरीर में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए चोकरयुक्त आटे की रोटी तथा छिलके वाली मूंग की दाल खाएं।
उबले अनाज, चावल, बाजरा, जौ, गेहूं, चपाती आदि भोजन में सम्मिलित करें।
उबली हुई हरी सब्जियां, अंकुरित अनाज, साबूदाना, गिरीदार फल, शहद तथा सभी प्रकार के फल (खट्टे फल एवं केले को छोड़कर) पर्याप्त मात्रा में लें।
नियमित टहलें, व्यायाम (क्षमतानुसार) एवं मालिश करें। कब्ज न होने दें। हफ्ते में एक दिन उपवास रखना चाहिए। इससे दर्द में राहत मिलती है

अन्य उपचार

खान-पान और गठिया (To Control Arthritis Improve Diet)

~गठिया रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, चलने-फिरने में भी तकलीफ होने लगती है तथा जोड़ों में बहुत दर्द होता है
~गठिया का मूल कारण: गठिया का मूल कारण है शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा का बढ़ जाना, जिसकी वजह से जोड़ों में सूजन आ जाती है। पीड़ित दर्द के कारण ज्यादा चल फिर नहीं सकता, यहां तक कि हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है।
~सबसे पहले इसका असर पैरों के अंगूठे में देखने को मिलता है। इस रोग की सबसे बड़ी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह थकान महसूस होती है।
~गठिया में परहेज़ आवश्यक होता है इसलिए आपको यह जानना जरुरी है क्या खाएं और क्या नहीं खाएं।
~गठिया में जड़ों वाली फ़ल सब्जियां काफी लाभप्रद होती हैं, गाजर, शकरकंद और अदरक अच्छा होता है। इनमें प्यूरिन की मात्रा काफी कम होती है।
~गठिया से पीड़ित व्यक्तियों को ढेर सारा पानी पीनें और तरल पदार्थों का सेवन करने को कहा जाता है, लेकिन अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक के सेवन से बचें अगर आप अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करते हैं तो आपकी समस्या और भी बढ़ सकती है।
~अल्कोहल खासकर बीयर शरीर में यूरिक एसिड के लेवल को तो बढ़ाता है और तो और शरीर से गैर जरूरी तत्व निकालने में शरीर को रोकता है।
~फ्रेक्टोस वाली चीजों का सेवन करने वालो को गठिया होने की संभावना दुगनी होती है, 2010 में किए गए एक शोध से यह बात सामने आई है।
~अगर आप गठिया से पीड़ित है तो आप को उन खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए, जिनमें अधिक मात्रा में प्यूरिन पाया जाता हो, क्योंकि ज्यादा प्यूरिन हमारे शरीर में ज्यादा यूरिक एसिड पैदा करता है।
~शतावरी, पत्तागोभी, पालक, मशरूम, टमाटर, सोयाबीन तेल जैसी सब्जिओं का गठिया से पीडित व्यक्तियों को परहेज करना चाहिए।

फाइलेरिया (Elephantiasis)

फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं, (Elephantiasis) में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव भी कहा जाता है।

फाइलेरिया (About Elephantiasis or Filaria in Hindi)
फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि (Worms) लसीका तंत्र (Lymphatic System) की नलियों में होते हैं और उन्हें बंद कर देते हैं। फाइलेरिया रोग, फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी (Filaria Bancrofti) नामक विशेष प्रकार के कृमियों द्वारा होता है और इसका प्रसार क्यूलेक्स (Culex) नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है।
इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियाँ (Lymphatic vessels) हैं, परंतु ये निश्चित समय पर, विशेषतः रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं।
कभी कभी ये ज्वर तथा नसों में सूजन उत्पन्न कर देते हैं। यह सूजन घटती बढ़ती रहती है, परंतु जब ये कृमि लसीका तंत्र की नलियों के अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है।
लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने पर कोई भी औषधि अवरुद्ध लसीकामार्ग को नही खोल सकती। कुछ रोगियों में ऑपरेशन (Surgery) द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है।



भारत में फाइलेरिया (Effect of Elephantiasis or Filaria in India)
फाइलेरिया भारत के कई भागों में प्रचलित है और एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह बीमारी पूर्वी भारत, मालाबार और महाराष्ट्र के पूर्वी इलाकों में बहुत अधिक फैली हुई है।
राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनऍफ़सीपी) 1955 में इस रोग पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। भारत में फाइलेरिया का संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा कारण डब्ल्यू वानक्रोफ़टी माना जाता है। देश में इस बीमारी का लगभग 98% भाग इसी की वजह से होता है। यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
गोवा, लक्षदीप, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्य फाइलेरिया से बहुत कम प्रभावित हैं। एक शोध के अनुसार करीब 550 लाख से भी अधिक लोगों को फाइलेरिया होने का जोखिम है तथा 21 लाख लोगों में फाइलेरिया होने के लक्षण हैं और लगभग 27 लाख लोग फाइलेरिया के संक्रमण में वाहक का काम कर रहे हैं।

फाइलेरिया को फैलाने वाले कारक ( Culex Mosquito Vector of Elephantiasis)

एक व्यक्ति से दूसरे तक यह रोग स्थानांतरित करने में क्यूलेक्स नामक मच्छर (Culex Mosquito) रोगवाहक का काम करता है। जो वयस्क परजीवी होता है वह छोटे और अपरिपक्व माइक्रोफिलारे को जन्म देता है और एक वयस्क परजीवी अपने 4-5 साल के जीवन काल में लाखों माइक्रोफिलारे लार्वा पैदा करता है।
माइक्रोफिलारे आमतौर पर व्यक्ति के रक्त परिधि में रात में प्रसारित होता है। यह बीमारी एक संक्रमित मच्छर क्यूलेक्स के काटने से फैलता है। जब कोई क्यूलेक्स मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति से माइक्रोफिलारे उस मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाता है।
मच्छर के शरीर में माइक्रोफिलारे 7-21 दिनों में विकसित होता है। इसके बाद जब संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है। एक अन्य परजीवी, जिसके कारण फाइलेरिया होता है उसे ब्रूगिया मलाई कहा जाता है। यह मानसोनिया (मानसोनियोडिस) एनूलीफेरा द्वारा फैलता है। ब्रूगिया मलाई का संक्रमण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है।

फाइलेरिया के लक्षण
1.एक या ज़्यादा हाथ व पैरों में (ज़्यादातर पैरों में) सूजन
2.कॅपकॅपी के साथ बुखार आना
3.गले में सूजन आना
4.गुप्तांग एवं जॉघो के बीच गिल्ठी होना तथा दर्द रहना
5.पुरूषों के अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसिल) होना
6.पैरों व हाथों की लसिका वाहिकाएं लाल हो जाती हैं

फाइलेरिया के कारण (Elephantiasis Causes)
जिन क्षेत्रों में फाइलेरिया आम बात होती है उन क्षेत्रों में ज्यादा समय तक रहने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

फाइलेरिया का उपचार (Elephantiasis Treatment)
सामान्य उपचार
फाइलेरिया से बचाव (Treatment of Elephantiasis)
मच्छरों से बचाव फाइलेरिया (Hathipaon) को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।
किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए।
ऐसे कपड़े पहनें जिनसे पाँव और बांह पूरी तरह से ढक जाएं।
आवश्यकता पड़े तो पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें। बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपड़े मिलते हैं।
मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे का छिड़काव करें।
इलाज बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए।

फाइलेरिया के लिए घरेलू उपाय (Home Remedies For Elephantiasis)
एलीफेंटिटिस यानि श्लीपद ज्वर एक परजीवी के कारण फैलती है जो कि मच्छर के काटने से शरीर के अंदर प्रवेश करता है। इस बीमारी से मरीज के पैर हाथी के पैरों की तरह फूल जाते हैं। इस रोग के होने से न केवल शारीरिक विकलांगता हो सकती है बल्कि मरीजों की मानसिक और आर्थिक स्थिति भी बिगड़ सकती है।
एलीफेंटिटिस को लसीका फाइलेरिया भी कहा जाता है क्योंकि फाइलेरिया शरीर की लसिका प्रणाली को प्रभावित करता है। यह रोग मनुष्यों के हाथ- पैरों के साथ ही जननांगों को भी प्रभावित करता है। फाइलेरिया के उपचार के लिए यहां हम आपको कुछ घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खे बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आप निश्चय ही लाभ उठा पाएंगे।

1. लौंग (Laung or Clove)- लौंग फाइलेरिया के उपचार के लिए बहुत प्रभावी घरेलू नुस्खा है। लौंग में मौजूद एंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे खत्म कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को रक्त से नष्ट कर देते हैं। रोगी लौंग से तैयार चाय का सेवन कर सकते हैं।

2. काले अखरोट का तेल (Black walnut oil)- काले अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन से चार बूंदे डालकर पिएं। इस मित्रण को दिन में दो बार पिया जा सकता है। अखरोट के अंदर मौजूद गुणों से खून में मौजूद कीड़ों की संख्या कम होने लगती है और धीरे धीरे एकदम खत्म हो जाती है। जल्द परिणाम के लिए कम से कम छह हफ्ते प्रतिदिन इस उपाय को करें।

3. भोजन (Food)- फाइलेरिया के इलाज के लिए अपने रोज के खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, गाजर और खुबानी आदि शामिल करें। इनमें विटामिन ए होता है और बैक्टरीरिया को मारने के लिए विशेष गुण भी होते हैं।

4. आंवला (Amla)- आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें एन्थेलमिंथिंक (Anthelmintic) भी होता है जो कि घाव को जल्दी भरने में बेहद लाभप्रद है। आंवला को रोज खाने से इंफेक्शन दूर रहता है।

5. अश्वगंधा (Ashwagandha)- अश्वगंधा शिलाजीत का मुख्य हिस्सा है, जिसके आयुर्वेद में बहुत से उपयोग हैं। अश्वगंधा को फाइलेरिया के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

6. ब्राह्मी (Brahmi)- ब्राह्मी पुराने समय से ही बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। फाइलेरिया के इलाज के लिए ब्राह्मी को पीसकर उसका लेप लगाया जाता है। रोजाना ऐसा करने से रोगी सूजन कम हो जाती है।

7. अदरक (Ginger)- फाइलेरिया से निजात के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का रोज गरम पानी से सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

8. शंखपुष्पी (Shankhpushpi)- फाइलेरिया के उपचार के लिए शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे सूजन कम होने में मदद मिलेगी।

9. कुल्ठी (Kulthi)- कुल्ठी या हॉर्स ग्राम (Horse Gram) में चींटियों द्वारा निकाली गई मिट्टी और अंडे की सफेदी मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। इस लेप को प्रतिदिन प्रभावित स्थान पर लगाएं, सूजन से आराम मिलेगा।

10. अगर (Agarwood)- अगर को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार करें। इस लेप को प्रतिदिन 20 मिनट के लिए दिन में दो बार प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे घाव जल्दी भरते हैं और सूजन कम होती है। घाव में मौजूद बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।

11. रॉक साल्ट (Rock Salt)- शंखपुष्पी और सौंठ के पाउडर में रॉक साल्ट मिलाकर, एक एक चुटकी रोज दो बार गरम पानी के साथ लें।

Tuesday 12 June 2018

Switch off the smartphone, light exposure during sleep affects metabolism

Do you sleep under artificial lights or are exposed to the blue light of your smartphone? A new study says that chronic overnight light exposure could have long-term effects on your metabolic function.
Being exposed to light at night can wreak havoc on your sleep cycle, but that’s not the only cause for concern. A new study done by the American Academy of Sleep Medicine says that light exposure at night can also impact your metabolism.
According to the study, chronic overnight light exposure could have long-term effects on metabolic function. “Our preliminary findings show that a single night of light exposure during sleep acutely impacts measures of insulin resistance,” said lead author Ivy Cheung Mason. “Light exposure overnight during sleep has been shown to disrupt sleep, but these data indicate that it may also have the potential to influence metabolism.”
What the study shows
Results show that a single night of light exposure during sleep acutely impacts measures of insulin resistance. Insulin resistance is the diminished ability of cells to respond to insulin action transporting glucose out of the bloodstream and precedes the development of type 2 diabetes.
“These results are important given the increasingly widespread use of artificial light exposure, particularly at night,” said Mason “The effect we see is acute; more research is needed to determine if chronic overnight light exposure during sleep has long-term cumulative effects on metabolic function.”
The study appears in an online supplement of the journal Sleep and was presented at SLEEP 2018, the 32nd Annual Meeting of the Associated Professional Sleep Societies LLC.
* A study done by the Ohio State University in the US, which was conducted on hamsters, found that the negative health impact of night-time light exposure on parents may be inherited by offsprings. The evidence indicated that the dim light exposure had various repercussions for offspring, and that fathers and mothers independently appeared to pass along genetic instructions that impaired immune response and decreased endocrine activity.
* A 2015 study done by the University of Connecticut shows that over-exposure to artificial light at night has serious long-term health implications including a tendency to contract breast cancer, obesity, diabetes, depression, and possibly other forms of cancer.
* Researchers from the Queensland University of Technology in Brisbane, Australia, found that children who spend too much time on tablets, mobile phone or television are more likely to gain unhealthy weight. It is not just because of physical inactivity, but also due to increased exposure to light, says the study.
* Researchers from the University of Colorado Boulder in the US found that blue light emitted by smartphone screens disrupts sleep in children and teenagers.

Saturday 9 June 2018

Our Body Has A ‘Second Brain’ And It’s Smarter Than What We Think

You know that ‘gut feeling’ you get ever so often throughout your life, when you feel you know what you know and it’s most probably true?
Well, ironically your gut can actually think for itself and it’s been touted as a second brain, says a recent study.
Your gastrointestinal tract contains millions of neurons that are capable of controlling the movements of your muscles in your colon, states a study published in the journal JNeurosci.
The enteric nervous system (ENS) is known as the ‘second brain’ or the brain in the gut because it can operate independently of the brain and spinal cord, the central nervous system (CNS), according to a press release on the matter.
The ENS and the CNS together help control the majority of your bodily activities. The ‘second brain’ (ENS) has its own circuitry that helps it communicate with the CNS and also control the digestive tract by itself.
The ENS is also being called as the ‘first brain’ because of mounting evidence suggesting that the ENS evolved before the CNS.
"The unique feature of the GI tract is that it is the only internal organ with its own complete nervous system that can operate totally independently of the brain and/or spinal cord," says Prof. Nick Spencer, a neurophysiologist from Flinders University in Australia.
"Until this new study no one had any idea exactly how large populations of neurons in the ENS lead to contraction of the intestine,” adds Spencer.
"Too often in medicine there is a demand to cure disease, without understanding how the organ in question actually works," states Spencer. They hope to understand how patterns in the colon cause diseases. Chronic constipation, for instance, occurs due to improper transit through your colon.

Friday 8 June 2018

This Descriptive Video Reveals How Smoking Cigarettes Can Damage Your Heart

While the publicised ill-effects of smoking continue to revolve around the fact that it damages your lungs and highlights its other side effects, like cancer (tobacco is one of the leading causes of cancer in India), its negative impact stretch to other organs, like your heart, as well.
In fact, the most recent analysis concluded that smoking is responsible for 17 percent of all heart disease deaths worldwide!
That means about one in every ten heart disease deaths can be attributed to smoking.
In the pretext of this shocking statistic WHO had released a descriptive video revealing the ill-effects smoking has on your heart on #WorldNoSmokingDay
The footage begins by asking whether the viewers are aware that tobacco is one of the major causes of heart disease.

7 Reasons Why Mosquitoes Could Bite You More Than Others

We’re well into the summers, which also brings in a wave of mosquito-related issues apart from the scorching heat. The best way to avoid getting infected by mosquitoes—which would mean the transmission of diseases like chikungunya, dengue and malaria—is to prevent from getting bitten by them in the first place.

The question then becomes about how to avoid becoming a magnet for mosquitoes in the first place.

Have you noticed though, some people get bitten by mosquitoes more than others? Here’s why that happens and how you can prevent it.

#1. Wear appropriate clothing Mosquitoes are highly visual as they use their eyes as one of their first modes to identify and target their victims. Your best bet would be to stay covered in darker clothing (think, black or navy. In fact, the colour red makes your easier to be spotted.

#2. Watch out if you have Type O blood
They find O type blood far more attractive than A or B blood type people. Turns out type O blood is more beneficial for mosquitoes to harvest protein have from out blood. Additionally, 85 percent of the people secrete a chemical signal through their skin indicating the type of blood type they possess—these people, of course, attract more mosquitoes towards themselves.

#3. They love to sniff you out based on the carbon dioxide you emit One of the keys used by mosquitoes to target people is through the carbon dioxide they emit via their breath. People who are larger in size tend to emit more; the more gas you emit the more attractive you become to them. They are so adept at sniffing out gaseous emission that they can sniff them from 164 feet away.

#4. The fitter you are the more likely you are to get bitten Apart from carbon dioxide, mosquitoes have a keen sense of smell for lactic acid, uric acid, ammonia and other such compounds that are emitted through sweat, as well as higher body temperatures. Since strenuous exercise increases the build up the heat and lactic acid in your body and consumption of protein-rich foods increase the presence of substances like uric acid in your body, exercise does indeed make you a better candidate to be bitten.

#5. Even the bacteria on your skin is a factor Having a large amount of a certain kind of bacteria makes your skin more appealing to mosquitoes. We have more microbes on our skin than actual skin cells, making us appetising as well as easy targets to be bitten. Also, since our ankles and feet contain larger more robust colonies of bacteria, it’s no surprise that we get bitten in these areas more than others.

#6. Stay out of reach if you’re pregnant
Pregnant women are the most appetizing for mosquitoes because their bodies are about a degree (or more) warmer than others, exhale about 20 percent more carbon dioxide and have larger body mass. In fact, a study in Africa discovered that pregnant women are twice as attractive to malaria-ridden mosquitoes, in comparison to non-pregnant women.

#7. Apparently, mosquitoes too have a taste for beer Although the exact reason isn’t clear, it is clear, however, that drinking beer can increase your chances of getting bitten by a mosquito. A study revealed that mosquitoes are attracted to people who’ve had up to a 12-ounce bottle of beer. The increased ethanol content in the sweat is what they pointed towards, but exact reason still remains unknown.

थकान (Fatigue)

थकान (Fatigue) थकान एक सामान्य अवस्था है, अधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करने से शरीर में थकान आ जाती है और शरीर सुस्त हो जाता है। थ...