Friday 15 June 2018

फाइलेरिया (Elephantiasis)

फाइलेरिया रोग, जिसे हाथी पांव या फील पांव भी कहते हैं, (Elephantiasis) में अक्सर हाथ या पैर बहुत ज्यादा सूज जाते हैं। इसके अलावा फाइलेरिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि या कभी अन्य अंग भी सूज सकते हैं। आम बोलचाल की भाषा में हाथीपांव भी कहा जाता है।

फाइलेरिया (About Elephantiasis or Filaria in Hindi)
फाइलेरिया रोग एक कृमिवाली बीमारी है। यह कृमि (Worms) लसीका तंत्र (Lymphatic System) की नलियों में होते हैं और उन्हें बंद कर देते हैं। फाइलेरिया रोग, फाइलेरिया बैंक्रॉफ्टी (Filaria Bancrofti) नामक विशेष प्रकार के कृमियों द्वारा होता है और इसका प्रसार क्यूलेक्स (Culex) नामक विशेष प्रकार के मच्छरों के काटने से होता है।
इस कृमि का स्थायी स्थान लसीका वाहिनियाँ (Lymphatic vessels) हैं, परंतु ये निश्चित समय पर, विशेषतः रात्रि में रक्त में प्रवेश कर शरीर के अन्य अंगों में फैलते हैं।
कभी कभी ये ज्वर तथा नसों में सूजन उत्पन्न कर देते हैं। यह सूजन घटती बढ़ती रहती है, परंतु जब ये कृमि लसीका तंत्र की नलियों के अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है।
लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने पर कोई भी औषधि अवरुद्ध लसीकामार्ग को नही खोल सकती। कुछ रोगियों में ऑपरेशन (Surgery) द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है।



भारत में फाइलेरिया (Effect of Elephantiasis or Filaria in India)
फाइलेरिया भारत के कई भागों में प्रचलित है और एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह बीमारी पूर्वी भारत, मालाबार और महाराष्ट्र के पूर्वी इलाकों में बहुत अधिक फैली हुई है।
राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एनऍफ़सीपी) 1955 में इस रोग पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। भारत में फाइलेरिया का संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा कारण डब्ल्यू वानक्रोफ़टी माना जाता है। देश में इस बीमारी का लगभग 98% भाग इसी की वजह से होता है। यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
गोवा, लक्षदीप, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्य फाइलेरिया से बहुत कम प्रभावित हैं। एक शोध के अनुसार करीब 550 लाख से भी अधिक लोगों को फाइलेरिया होने का जोखिम है तथा 21 लाख लोगों में फाइलेरिया होने के लक्षण हैं और लगभग 27 लाख लोग फाइलेरिया के संक्रमण में वाहक का काम कर रहे हैं।

फाइलेरिया को फैलाने वाले कारक ( Culex Mosquito Vector of Elephantiasis)

एक व्यक्ति से दूसरे तक यह रोग स्थानांतरित करने में क्यूलेक्स नामक मच्छर (Culex Mosquito) रोगवाहक का काम करता है। जो वयस्क परजीवी होता है वह छोटे और अपरिपक्व माइक्रोफिलारे को जन्म देता है और एक वयस्क परजीवी अपने 4-5 साल के जीवन काल में लाखों माइक्रोफिलारे लार्वा पैदा करता है।
माइक्रोफिलारे आमतौर पर व्यक्ति के रक्त परिधि में रात में प्रसारित होता है। यह बीमारी एक संक्रमित मच्छर क्यूलेक्स के काटने से फैलता है। जब कोई क्यूलेक्स मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति से माइक्रोफिलारे उस मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाता है।
मच्छर के शरीर में माइक्रोफिलारे 7-21 दिनों में विकसित होता है। इसके बाद जब संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है। एक अन्य परजीवी, जिसके कारण फाइलेरिया होता है उसे ब्रूगिया मलाई कहा जाता है। यह मानसोनिया (मानसोनियोडिस) एनूलीफेरा द्वारा फैलता है। ब्रूगिया मलाई का संक्रमण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है।

फाइलेरिया के लक्षण
1.एक या ज़्यादा हाथ व पैरों में (ज़्यादातर पैरों में) सूजन
2.कॅपकॅपी के साथ बुखार आना
3.गले में सूजन आना
4.गुप्तांग एवं जॉघो के बीच गिल्ठी होना तथा दर्द रहना
5.पुरूषों के अंडकोष में सूजन (हाइड्रोसिल) होना
6.पैरों व हाथों की लसिका वाहिकाएं लाल हो जाती हैं

फाइलेरिया के कारण (Elephantiasis Causes)
जिन क्षेत्रों में फाइलेरिया आम बात होती है उन क्षेत्रों में ज्यादा समय तक रहने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

फाइलेरिया का उपचार (Elephantiasis Treatment)
सामान्य उपचार
फाइलेरिया से बचाव (Treatment of Elephantiasis)
मच्छरों से बचाव फाइलेरिया (Hathipaon) को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।
किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए।
ऐसे कपड़े पहनें जिनसे पाँव और बांह पूरी तरह से ढक जाएं।
आवश्यकता पड़े तो पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें। बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपड़े मिलते हैं।
मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे का छिड़काव करें।
इलाज बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए।

फाइलेरिया के लिए घरेलू उपाय (Home Remedies For Elephantiasis)
एलीफेंटिटिस यानि श्लीपद ज्वर एक परजीवी के कारण फैलती है जो कि मच्छर के काटने से शरीर के अंदर प्रवेश करता है। इस बीमारी से मरीज के पैर हाथी के पैरों की तरह फूल जाते हैं। इस रोग के होने से न केवल शारीरिक विकलांगता हो सकती है बल्कि मरीजों की मानसिक और आर्थिक स्थिति भी बिगड़ सकती है।
एलीफेंटिटिस को लसीका फाइलेरिया भी कहा जाता है क्योंकि फाइलेरिया शरीर की लसिका प्रणाली को प्रभावित करता है। यह रोग मनुष्यों के हाथ- पैरों के साथ ही जननांगों को भी प्रभावित करता है। फाइलेरिया के उपचार के लिए यहां हम आपको कुछ घरेलू और आयुर्वेदिक नुस्खे बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आप निश्चय ही लाभ उठा पाएंगे।

1. लौंग (Laung or Clove)- लौंग फाइलेरिया के उपचार के लिए बहुत प्रभावी घरेलू नुस्खा है। लौंग में मौजूद एंजाइम परजीवी के पनपते ही उसे खत्म कर देते हैं और बहुत ही प्रभावी तरीके से परजीवी को रक्त से नष्ट कर देते हैं। रोगी लौंग से तैयार चाय का सेवन कर सकते हैं।

2. काले अखरोट का तेल (Black walnut oil)- काले अखरोट के तेल को एक कप गर्म पानी में तीन से चार बूंदे डालकर पिएं। इस मित्रण को दिन में दो बार पिया जा सकता है। अखरोट के अंदर मौजूद गुणों से खून में मौजूद कीड़ों की संख्या कम होने लगती है और धीरे धीरे एकदम खत्म हो जाती है। जल्द परिणाम के लिए कम से कम छह हफ्ते प्रतिदिन इस उपाय को करें।

3. भोजन (Food)- फाइलेरिया के इलाज के लिए अपने रोज के खाने में कुछ आहार जैसे लहसुन, अनानास, मीठे आलू, शकरकंदी, गाजर और खुबानी आदि शामिल करें। इनमें विटामिन ए होता है और बैक्टरीरिया को मारने के लिए विशेष गुण भी होते हैं।

4. आंवला (Amla)- आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। इसमें एन्थेलमिंथिंक (Anthelmintic) भी होता है जो कि घाव को जल्दी भरने में बेहद लाभप्रद है। आंवला को रोज खाने से इंफेक्शन दूर रहता है।

5. अश्वगंधा (Ashwagandha)- अश्वगंधा शिलाजीत का मुख्य हिस्सा है, जिसके आयुर्वेद में बहुत से उपयोग हैं। अश्वगंधा को फाइलेरिया के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

6. ब्राह्मी (Brahmi)- ब्राह्मी पुराने समय से ही बहुत सी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। फाइलेरिया के इलाज के लिए ब्राह्मी को पीसकर उसका लेप लगाया जाता है। रोजाना ऐसा करने से रोगी सूजन कम हो जाती है।

7. अदरक (Ginger)- फाइलेरिया से निजात के लिए सूखे अदरक का पाउडर या सोंठ का रोज गरम पानी से सेवन करें। इसके सेवन से शरीर में मौजूद परजीवी नष्ट होते हैं और मरीज को जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।

8. शंखपुष्पी (Shankhpushpi)- फाइलेरिया के उपचार के लिए शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर पेस्ट तैयार करें। इस पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे सूजन कम होने में मदद मिलेगी।

9. कुल्ठी (Kulthi)- कुल्ठी या हॉर्स ग्राम (Horse Gram) में चींटियों द्वारा निकाली गई मिट्टी और अंडे की सफेदी मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाएं। इस लेप को प्रतिदिन प्रभावित स्थान पर लगाएं, सूजन से आराम मिलेगा।

10. अगर (Agarwood)- अगर को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार करें। इस लेप को प्रतिदिन 20 मिनट के लिए दिन में दो बार प्रभावित स्थान पर लगाएं। इससे घाव जल्दी भरते हैं और सूजन कम होती है। घाव में मौजूद बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।

11. रॉक साल्ट (Rock Salt)- शंखपुष्पी और सौंठ के पाउडर में रॉक साल्ट मिलाकर, एक एक चुटकी रोज दो बार गरम पानी के साथ लें।

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