Saturday, 14 July 2018

थकान (Fatigue)

थकान (Fatigue)

थकान एक सामान्य अवस्था है, अधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करने से शरीर में थकान आ जाती है और शरीर सुस्त हो जाता है। थकान, कमजोरी से अलग है। आराम करने पर थकान चली जाती है जबकि कमजोरी बनी रह सकती है।

क्या है थकान (About Fatigue)
थकान की वजह सिर्फ कमजोरी हो ऐसा जरूरी नहीं है। हमेशा होने वाली थकान (Thakan) गलत जीवनशैली से लेकर कई रोगों का संकेत हो सकती है।
अगर आप पूरे दिन थकान महसूस करते हैं, तो इसे नजरअंदाज न करें। इसका बुनियादी अर्थ है कि शारीरिक या मानसिक स्तर पर कहीं कुछ ठीक नहीं है।

थकान के लक्षण
कमजोरी महसूस होना
किसी काम में मन न लगना
नकरात्मक सोच का बढ़ना
हर समय नींद आना

अधिक शारीरिक परीश्रम करने पर तो थकान हो सकती है लेकिन अगर थकान लगातार हो तो यह एक गंभीर मुद्दा हो सकता है। जानिएं किन हालातों में अधिक थकान होती है।

थकान के कारण (Causes of Fatigue)
शारीरिक स्तर पर इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे एनीमिया, थाइराइड, शुगर और कोलेस्ट्रॉल का बड़ा हुआ स्तर।

शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cell) की कमी से एनीमिया की दिक्कत होती है, जिसका एक प्रमुख लक्षण है थकान। आजकल महिलाओं में यह समस्या अधिक पाई जाती है जिससे बचाव के लिए आयरन (Iron) से भरपूर डाइट फायदेमंद होती है।

हाइपोथायराइड और मधुमेह (Diabetes) की स्थिति में शरीर में मेटाबॉलिज्म (Metabolism) सही तरीके से काम नहीं करता जिसके कारण कोशिकाओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है, इसलिए शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है और आप जल्दी थक जाते हैं।

यह हल्के बुखार की वजह से भी हो सकता है जो इंफेक्शन का नतीजा होता है।

बहुत ज्यादा शुगर या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे चावल, मैदा आदि खाना, लम्बे अंतराल पर खाना खाना और सही तरह का भोजन न खाने से भी आदमी थकान महसूस करता है।

मानसिक स्तर पर होने वाली थकान का अर्थ है कि आप तनावग्रस्त हैं।

अवसाद (Depression) की स्थिति में भी बहुत अधिक थकान, सिरदर्द और कमजोरी महसूस होती है। अवसाद की वजह से थकावट होना आज की जीवनशैली में बहुत सामान्य है।

अगर आप दो-तीन हफ्तों तक हर समय थकान महसूस करते हैं तो मनोचिकित्सक से परामर्श उचित होगा।

दिन में कई बार चाय-कॉफी का सेवन करने वाले लोगों को थकान जल्दी होती है। कैफीन वाली चीजों के अधिक सेवन से ब्लड प्रेशर और धड़कन की गति तेज होती है जिससे थकान जल्दी होती है।

गर्मियों में शरीर में पानी की कमी यानि डिहाइड्रेशन भी आपको जल्दी थका सकती है। इसलिए शरीर में पानी की कमी न होने दें।

आजकल कंपनियों में रात की शिफ्ट या अलग-अलग शिफ्ट में काम करने का चलन बढ़ गया है। कई बार इससे बॉडी क्लॉक पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और हर समय थकावट महसूस होती है। इससे बचाव के लिए दिन में सोने का एक नियत समय तय करें जिससे आपका शरीर अभ्यस्त हो सके और सोकर उठने के बाद आप तरोताजा महसूस करें।

खान-पान और अपनी जीवनशैली पर ध्यान देने की खास जरूरत है। जरूरी नहीं कि हर बार थकान का कारण कोई शारीरिक समस्या हो, कई बार थकान का कारण मानसिक भी होता है।


सामान्य उपचार
थकान दूर भगाने का सबसे बेहतर उपाय होता है आराम करना। इसके साथ कुछ अन्य उपाय अपना कर भी आप थकान को दूर भगा सकते हैं। यह उपाय निम्न हैं:

थकान को कैसे भगाएं दूर (Treatment of Fatigue in)
रात में अच्छी व भरपूर नींद लेना, थकान को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। 7-8 घंटे की नींद जरूर लें ताकि अगले दिन के लिए आपको पर्याप्त ऊर्जा मिले।

जब भी थकान महसूस हो तो 15-20 मिनट की झपकी जरूर लें। नींद पूरी न होने से वजन भी बढ़ता है और थकान भी जल्दी होती है।

थकान अधिक होने पर हाथ पांव ढीले छोड़कर, आंखें बंद कर पलंग पर लेट जाइए। ऐसे में मांसपेशियों का तनाव दूर होता है।

हँसी वास्तव में सबसे अच्छी दवा है। पुराने दोस्तों से मुलाकात करें, हास्य फिल्में देखें...कोई भी चीज़- जिससे आप खुलकर हँस सकें। जिन लोगों को प्यार करते हैं उनके साथ वक्त गुजारें।

मन को अच्छा लगने वाला संगीत सुनें, इससे तनाव दूर होता है।

दिन भर थोड़ा-थोड़ा पानी या कोई भी तरल पदार्थ पीते रहें। पानी शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालकर शारीरिक प्रणाली में नई ऊर्जा भरता है। शर्बत, फलों का रस, छाछ व नारियल पानी आदि पीना चाहिए।

दिन भर के सतत ऊर्जा प्रवाह के लिए बहुत सारी हरी सब्जियाँ खायें। खाने में फल, नट्स, अंडा और फिश भी शामिल करें।

ज्यादा कॉफी और चाय न पियें, भले ही आपको उनसे राहत मिलती है। यह सिर्फ अस्थायी राहत होती है। 

सक्रिय रहें, आलस छोड़ें।

नियमित कसरत करें।



थकावट के लिए घरेलू नुस्ख़े (Home Remedies For Fatigue)
थकावट-आलस्य से आप जिंदगी से निराश महसूस करते हैं। हमेशा गुस्से में हारे हुए इंसान की तरह व्यवहार करते है। आप भी चाहते हैं कि एक अच्छे नस्ल के घोड़े की तरह रेस लगाएं, लेकिन आपको महसूस होता है कि आपके पांव कीचड़ में  फंसे हुए हैं। आप इच्छाशक्ति भी करते हैं लेकिन वो काम नहीं करता। मानसिक और शारीरिक थकावट वैसे तो सामान्य बीमारी है , मगर कुछ गंभीर बीमारी में भी ऐसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

थकावट कई कारणों से होती है। मुख्य तौर पर खराब जीवनशैली, नींद में कमी, कुपोषण, फ्लू, मोटापा, एलर्जी, एनीमिया, अल्कोहल का सेवन, थायराइड, हार्ट की बीमारी समेत कैंसर, डायबिटीज और एडस जैसी गंभीर बीमारी में भी थकावट का अनुभव होता है।

थकावट का कोई खास चिकित्सकीय इलाज नहीं है बस आपको अपने जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाना होगा। खाने की आदत, पीने की आदत में बदलाव के साथ व्यायाम-योग और ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा। हमेशा सकारात्मक सोचना होगा।


थकावट को भगाने के क्विक घरेलू इलाज (Quick Home remedies for fatigue)
पिपरमिंट तेल के कुछ बूंदों को टिसू पेपर या रुमाल पर डालकर नाक के पास रखें और तेज सांस ले। काफी तरोताजा महसूस करेंगे। अगर आपके पास थोड़ा समय है तो नहाने के टब में कुछ बुंदे पिपरमिंट तेल के और कुछ बूंदे मेंहदी के तेल के डाल कर स्नान करें। काफी स्फूर्ति मिलेगी।


सुबह-शाम नियमित योग करें। खासकर पीठ के बल लेट कर पैर को सिर से उंचा करना और फिर उसे धीरे-धीरे नीचे करना। घुटनों को नाक में सटाना। ये कुछ ऐसे व्यायाम हैं जिससे आप तरोताजा महसूस करते हैं। योग में भ्रामरी भी काफी फायदेमंद रहता है।

सुबह बेहतर और पोषण से भरा नाश्ता करें और दिन भर में हल्का भोजन और शाम को हेल्दी स्नैक्स लेते रहें।  यह दिन में दो टाइम भरपेट और भारी भोजन खाने से ज्यादा बेहतर है। प्रयास करें कि आप अपने भोजन के साइज को 300 कैलोरी पर लिमिट कर इसका रुटीन बना लें। इससे आपका ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रहेगा और थकावट भी नहीं होगी।

भोजन में हमेशा हाइ-फाइबर वाले फूड्स ही खाएं। क्योंकि इसमें कंपलेक्स कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। जैसे कि समूचे-साबुत अनाज चावल और साबूत गेंहू की रोटी, दाल- दलिया और सब्जी-सलाद। इससे ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रहता है और थकावट नहीं होती है।
अधिक वसा वाले भोजन खाना कम करें। इससे मोटापा बढ़ती है और शरीर में हमेशा थकावट महसूस होती है।

बिना छीले हुए आलू के स्लाइस काट कर इसे रात भर पानी में भींगने छोड़ दें। सुबह इस जूस को पी लें। इसमें काफी मात्रा में पोटाशियम रहती है जो शरीर में मिनरल्स की कमी को दूर करती है। मिनरल्स के सेवन से शरीर की मांसपेशिया काफी सक्रिय रहती है और आप थकावट नहीं महसूस करते हैं।

दिन में एक बार पालक खाना थकावट को भगाने की सबसे पुराना घरेलू भलाज है। पालक में पोटाशियम के साथ आइरन और विटामिन बी ग्रुप के कई विटामिन पाए जाते हैं, जो शरीर को उर्जा और स्फूर्ति देती है।

चैन की नींद सेहत के लिए सबसे जरुरी है। मानसिक और शारीरिक थकावट की सबसे बड़ी वजह नींद में कमी ही है। कम से कम एक एक मनुष्य को आठ घंटा बेहतर स्वास्थ्य के लिए सोना चाहिए। नींद में कमी है या गड़बड़ी है तो ध्यान-योग करें और हमेशा सकारात्मक सोचें। योग में एक आसन है- शवासन, उसे आजमाएं। काफी फायदा होगा।

सप्लीमेंट के तौर पर मानसिक औऱ शारीरिक थकावट को भगाने के लिए गिनसेंग, मैग्नीशियम और गिन्कगो भी ले सकते हैं।

थकावटसे लड़ने के लिए 10 टॉप फूड्स (10 Top Foods to fight fatigue)

1-केला
2-ग्रीन टी
3-सीताफल के बीज
4-ओटमील
5-योगर्ट
6-तरबूज
7-अखरोट
8-लाल शिमला मिर्च
9-हरी बींस
10-पालक

Tuesday, 3 July 2018

स्पोंडिलोसिस (Spondylosis)

स्पोंडिलोसिस या स्पॉन्डिलाइटिस, आर्थराइटिस का ही एक रूप है। यह समस्या मुख्यत: मेरु दंड (Spine) को प्रभावित करती है।

स्पोंडिलोसिस मेरुदंड की हड्डियों की असामान्य बढ़ोत्तरी और वर्टेब (Vertebrates) के बीच के कुशन (इंटरवर्टेबल डिस्क) में कैल्शियम के डी-जेनरेशन, बहिःक्षेपण और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है।


स्पॉन्डिलाइटिस के प्रकार (Types of Spondylosis)
शरीर के विभिन्न भागों को प्रभावित करने के आधार पर स्पॉन्डिलाइटिस तीन प्रकार का होता है:

सरवाइकल स्पोंडिलोसिस (Cervical Spondylosis): गर्दन में दर्द, जो सरवाइकल को प्रभावित करता है, सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस कहलाता है। यह दर्द गर्दन के निचले हिस्से, दोनों कंधों, कॉलर बोन और कंधों के जोड़ तक पहुंच जाता है। इससे गर्दन घुमाने में परेशानी होती है और कमजोर मांसपेशियों के कारण बांहों को हिलाना भी मुश्किल होता है।
लम्बर स्पोंडिलोसिस (Lumbar Spondylosis): इसमें स्पाइन के कमर के निचले हिस्से में दर्द होता है।

एंकायलूजिंग स्पोंडिलोसिस (Ankylosing Spondylosis): यह बीमारी जोड़ों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। रीढ़ की हड्डी के अलावा कंधों और कूल्हों के जोड़ इससे प्रभावित होते हैं। एंकायलूजिंग स्पोंडिलोसिस होने पर स्पाइन, घुटने, एड़ियां, कूल्हे, कंधे, गर्दन और जबड़े कड़े हो जाते हैं।

स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या (Facts of Spondylosis)

आमतौर पर इसके शिकार 40 की उम्र पार कर चुके पुरुष और महिलाएं होती हैं। आज की जीवनशैली में बदलाव के कारण युवावस्था में ही लोग स्पॉन्डिलाइटिस जैसी समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का सबसे प्रमुख कारण गलत पॉश्चर है, जिससे मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। इसके अलावा शरीर में कैल्शियम की कमी दूसरा महत्वपूर्ण कारण है।

मैक्स हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक विभाग के अनुसार, हॉस्पिटल में हर सप्ताह स्पॉन्डिलाइटिस के 20 नये मामले आते हैं, जिनमें मरीज की उम्र 30 से कम होती है। एक दशक पहले के आंकड़ों से तुलना करें तो यह संख्या तीन गुनी हुई है। वे युवा ज्यादा परेशान मिलते हैं, जो आईटी इंडस्ट्री या बीपीओ में काम करते हैं या जो लोग कम्प्यूटर के सामने अधिक समय बिताते हैं।

एक अनुमान के अनुसार हमारे देश का हर सातवाँ व्यक्ति गर्दन और पीठ दर्द या जोड़ों के दर्द से परेशान है।




स्पोंडिलोसिस के लक्षण
अगर स्पाइनल कोर्ड दब गई है तो ब्लेडर (Bladder) या बाउल (Bowl) पर नियंत्रण खत्म हो सकता है।

इस रोग का दर्द हाथ की उंगलियों से सिर तक हो सकता है।
उंगलियां सुन्न हो जाती हैं।

कंधे, कमर के निचले हिस्से और पैरों के ऊपरी हिस्से में कमजोरी और कड़ापन आ जाता है।

कभी-कभी छाती में दर्द हो सकता है।

कशेरुकाओं (Vertebra) के बीच की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है।

गर्दन से कंधों और वहां से होता हुआ यह दर्द हाथों, सिर के निचले हिस्से और पीठ के ऊपरी हिस्से तक पहुंच सकता है।
छींकना, खांसना और गर्दन की दूसरी गतिविधियां इन लक्षणों को और गंभीर बना सकती हैं।

दर्द के अलावा संवेदन शून्यता और कमजोरी महसूस हो सकती है।

शारीरिक संतुलन गड़बड़ा सकता है।

सबसे पहले दिखाई देने वाले लक्षणों में से एक गर्दन या पीठ में दर्द और उनका कड़ा हो जाना है।

समय बीतने के साथ दर्द का गंभीर हो जाना।

स्पोंडिलोसिस की समस्या होने पर यह सिर्फ जोड़ो तक ही सीमित नहीं रहती। समस्या गंभीर होने पर बुखार, थकान, उल्टी होना, चक्कर आना और भूख की कमी जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।




स्पोंडिलोसिस कई कारणों से होता है। कई बार जोड़ों में दर्द का कारण बनने वाले स्पोंडिलोसिस आनुवांशिक भी होती है लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता। स्पोंडिलोसिस के कुछ सामान्य कारण निम्न हैं:

स्पोंडिलोसिस का कारण (Causes of Spondylosis)

आनुवंशिक कारण
उम्र का बढ़ना
भोजन में पोषक तत्वों, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी के कारण हड्डियों का कमजोर हो जाना
बैठने या खड़े रहने का गलत तरीका
लंबे समय तक ड्राइविंग करना
शारीरिक श्रम का अभाव
मसालेदार ठंडी या बासी चीजों को खाना
विलासिता पूर्ण जीवनशैली
महिलाओं में लगातार माहवारी का असंतुलन
उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों में क्षय या विकार पैदा होना
अक्सर फ्रैक्चर के बाद भी हड्डियों में क्षय की स्थिति होने लगती है।

सामान्य उपचार

स्पोंडिलोसिस का इलाज (Treatment of Spondylosis)
खाने में कैल्शियम और विटामीन डी को शामिल कर काफी हद तक इस बीमारी से बचा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही स्पोंडिलोसिस से बचने के  लिए अपने चलने और बैठने के तरीके पर भी ध्यान देना जरूरी है। कुछ अन्य सावधानियां और उपाय निम्न हैं:

जीवनशैली में बदलाव लाएं।

पौष्टिक भोजन खाएं, विशेषकर ऐसा भोजन जो कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर हो।

चाय और कैफीन का सेवन कम करें।

पैदल चलने की कोशिश करें। इससे बोन मास (Bone Mass) बढ़ता है। शारीरिक रूप से सक्रिय (Active) रहें।

नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।

हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं। इस बात का ध्यान रखें कि बिस्तर न तो बहुत सख्त हो और न ही बहुत नर्म।

स्पोंडिलोसिस से पीड़ित लोग गर्दन के नीचे बड़ा तकिया न रखें। उन्हें पैरों के नीचे भी तकिया नहीं रखना चाहिए।

ऐसी मेज और कुर्सी का प्रयोग करें, जिन पर आपको झुक कर न बैठना पड़े। हमेशा कमर सीधी करके बैठें। 

धूम्रपान न करें और तंबाकू न चबाएं।

स्पांडलाइसिस के घरेलू इलाज

सर्वाइकल स्पांडलाइसिस (Cervical Spondolysis) उम्र बढ़ने के साथ गर्दन के जोड़ की हड्डी-उपास्थि के घिसने के कारण होती है। यह गर्दन के हड्डी के डिस्क पलटने, लिगामेंट में फ्रैक्चर से भी हो सकता है। इसमें काफी असहनीय दर्द और पीड़ा होती है। गर्दन काफी भारी और कड़ा महसूस होने लगती है। कंधे से लेकर गर्दन और सिर तक में दर्द होती है।

बांहों की मांसपेशियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक में दर्द की संवेदनशीलता महसूस की जाती है। 60 के बाद यह किसी को भी हो सकता है। हालांकि खराब जीवनशैली, बैठने-खड़ा होने के गलत पोस्चर और अनुवांशिक कारणों से यह कभी भी अटैक कर सकता है। आइए जानते हैं स्पांडलाइसिस से लड़ने के घरेलू इलाज।

नियमित व्यायाम (Regular Exercise)
अगर आप नियमित रुप से गर्दन और बांह की कसरत करते रहें तो स्पांडलाइसिस के दर्द से आऱाम मिलेगा। अपने सिर को दाएं-बांए और उपर-नीचे घुमाते रहें। अपने गर्दन को दाएं और बांए कंधे पर बारी-बारी से झुकाएं। दस मिनट तक यह व्यायाम रोजाना 2 से 3 बार करें। काफी आराम मिलेगा। आप हल्के एरोबिक्स जैसे स्वीमिंग भी आधे घंटे तक रोज कर सकते हैं, इससे गर्दन की स्पांडलाइसिस में आराम मिलेगा।

गर्म और ठंडे पानी की पट्टी (Hot and cold compress)
गर्दन के प्रभावित क्षेत्र जहां दर्द हो और कड़ापन महसूस होता हो वहां पहले गर्म पानी और बाद में ठंडे पानी की पट्टी से दबाव डालें। गर्म पानी की पट्टी से ब्लड सर्कुलेशन तेज होगा और मांसपेशियों का खिंचाव कम होगा और दर्द से राहत मिलेगी। ठंडे पानी का पट्टी से सूजन कम होगा। गर्म पानी की पट्टी 2 से 3 मिनट तक रखें और ठंडे पानी की पट्टी 1 मिनट। इसे 15 मिनट पर दोबारा करें।

सेंधा नमक की पट्टी या स्नान (Epsom salt bath)

नियमित रुप से सेंधा नमक की पट्टी या इससे स्नान करने से स्पांडलाइसिस के दर्द में काफी आराम मिलता है। सेंधा नमक में मैग्नीशियम की मात्रा ज्यादा होने से यह शरीर के पीएच स्तर को नियंत्रित करता है और गर्दन की अकड़ और कड़ेपन को कम करता है। आधे ग्लास पानी में दो चम्मच सेंधा नमक मिला कर पेस्ट बना लें और उसे गर्दन के प्रभावित क्षेत्र में लगाएं, थोड़ी देर के बाद काफी राहत मिलेगी। या गुनगुने पानी में दो कप सेंधा नमक डाल कर रोजाना स्नान करें, काफी फायदा मिलेगा।

लहसुन (Garlic)
लहसुन में दर्द निवारक गुण होता है और यह सूजन को भी कम करता है। सुबह खाली पेट पानी के साथ कच्चा लहसुन नियमित खाएं, काफी फायदा होगा। तेल में लहसुन को पका कर गर्दन में मालिश भी किया जा सकता है, इससे दर्द में काफी राहत मिलेगी।

हल्दी (Turmeric)
हल्दी असहनीय दर्द को चूसने में सबसे कारगर साबित हुई है। इतना ही नहीं यह मांसपेशियों के खिचांव को भी ठीक करता है। एक ग्लास गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डाल कर पीएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।

तिल के बीज (Sesame Seeds)

तिल में कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, विटामिन के और डी काफी मात्रा में पाई जाती है जो हमारे हड्डी और मांसपेशियों के सेहत के लिए काफी जरुरी है। स्पांडलाइसिस के दर्द में भी तिल काफी कारगर है। तिल के गर्म तेल से गर्दन की हल्की मालिश 5 से 10 मिनट तक करें, फिर वहां गर्म पानी की पट्टी डालें, काफी आराम मिलेगा और गर्दन की अकड़ भी कम होगी।

और भी हैं कई टिप्स (Some more tips)
सुबह शाम भोजन के बाद थोड़ी मात्रा में हरीताकी खाएं, दर्द से निजात मिलेगी और गर्दन की अकड़ कम होगी।

शारीरिक श्रम कम करें या इससे परहेज ही कर लें। भारी सामान एकदम नहीं उठाएं

रात में चैन की नींद सोने का प्रयास करें।

हमेशा हल्के और मुलायम तकिए पर सोएं, तकिए को बदलें नहीं। 

सही पोस्चर में बैठे और खड़ा रहें।

तला-भुना और मसालेदार खानों से परहेज करें।

सलाद और हरी सब्जी का सेवन ज्यादा करें।

शराब और धूम्रपान को बाय-बाय करें।

प्रोटीन, विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस जिसमें ज्यादा हो वैसे ही भोजन करें।

सर्वाइकल कॉलर गर्दन में लगा कर ऑफिस या दुकान जाएं।

Friday, 29 June 2018

सुस्ती (Lethargy)


कई बार शरीर में स्फूर्ति (energy) नहीं रहती। शरीर एकदम थका हुआ महसूस करता है, और बहुत कमजोरी महसूस होती है। कई बार आलस इतना होता है कि हमेशा नींद आती रहती है। इसी अवस्था को लिथारजी या सुस्ती कहते हैं। तनावपूर्ण माहौल या पोषण की कमी के कारण शरीर कमजोर होने लगता है। कई बार रात में अच्छी नींद न सोने पर भी अगले दिन थका हुआ महसूस करते हैं। लेकिन ज्यादा सुस्ती शरीर के लिए बेहद हानिकारक भी है। कई बार यह सुस्ती मौत की वजह भी हो सकती है, क्योंकि ज्यादा सुस्ती से ब्रेन के सेल्स भी सुस्त होने लगते हैं और धीरे धीरे कार्य करना बंद कर देते हैं। पूरे शरीर की स्वभाविक प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, जो कई समस्याओं का कारण हो सकती है। ऐसे में शरीर को एक्टिव बनाये रखना बेहद जरूरी होता है।


सुस्ती, निम्न बीमारियों का कारण भी हो सकती है (Effects of Lethargy)

हृदय रोग (Heart Diseases):- जिस किसी भी व्यक्ति को हृदय रोग होता है या हार्ट अटैक आता है, चिकित्सक बताते हैं कि लगभग 70 फीसदी मामलों में ऐसे व्यक्ति कुछ हफ्ते पहले से ही सुस्ती महसूस करने लगते हैं। पुरूषों के मुक़ाबले महिलाओं में यह लक्षण ज्यादा नजर आते हैं।
लिवर समस्या (Liver Problem):- यदि कोई लगातार सुस्ती महसूस करे तो लीवर पर प्रभाव पड़ सकता है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो या कोई ड्रग लेने की लत हो तो हेपेटाइटिस सी की संभावना रहती है। हल्का बुखार, भूख न लगना और शरीर में दर्द इसके लक्षण हो सकते हैं।

एनीमिया (Anemia):- शरीर में आयरन की कमी भी सुस्ती का कारण हो सकता है, खासकर महिलाओं में। पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, फीडिंग के बाद महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है, जिससे रंग पीला पड़ने लगता है, चिड़चिड़ाहट शुरू हो जाती है और सुस्ती छाई रहती है।
थायरॉइड (Thyroid):- कई बार थायरॉइड संबंधी समस्याएं भी सुस्ती (Susti) का संकेत हो सकती हैं, खासकर मध्यम उम्र के लोगों में। थायरॉइड ग्लैंड टी-4 और टी- 3 जैसे हार्मोन बनाती है, लेकिन मिड एज में यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

सुस्ती के लक्षण
एकांत अच्छा लगना
कमजोरी महसूस होना (Weakness in Body)
किसी काम में मन न लगना
छोटे से छोटा काम करने में चिड़चिड़ाना
हर समय नींद और आलस आना
हर समय लेटे रहने का मन होना
मन में हमेशा नकारात्मक विचार आना

सुस्ती के कारण (Causes of Lethargy)
सुस्ती का अनुभव सभी को होता है, लेकिन थोड़ा आराम करने या रात की नींद के बाद, अगली सुबह तक सुस्ती दूर हो जाती है। यदि इसके बाद भी सुस्ती बनी रहे तो यह बीमारी का संकेत हो सकता है। किसी भी व्यक्ति की सुस्ती का असर न केवल उसके शारीरिक बल्कि मानसिक व सामाजिक स्तर पर भी पड़ता है। सुस्ती, व्यस्त दिनचर्या, खराब जीवन शैली, बीमारियां, अनियमित व असंतुलित खान-पान व अन्य कारणों से हो सकती है। आमतौर पर अच्छी नींद लेने और और दिनचर्या में बदलाव से इस समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है लेकिन कई बार चिकित्सक की सलाह लेनी ही पड़ती है।

इस समस्या के अन्य कारण (Reasons of Lethargy)
कमजोरी की वजह से।
ज्यादा तनावग्रस्त रहने से।
नींद पूरी न होने की वजह से।
शरीर में विटामिन की कमी से।
शरीर में खून की कमी की वजह से।

सामान्य उपचार

सुस्ती से बचने के उपाय (Tips to Prevent from Lethargy)
रोज योग और व्यायाम करें।
सुबह की ताजी हवा में टहलें।
तनावमुक्त रहने का प्रयास करें।
खाने में विटामिन की मात्रा बढ़ाएं।
कम से कम 8 घंटे की नींद जरूर लें।
आंवले का मुरब्बा भी शरीर को स्फूर्ति देता है।
हल्का संगीत, हल्की आवाज में सुनें। इससे भी मानसिक सुस्ती दूर होती है।
कई बार सुगंधित तेलों की मालिश से भी शरीर की सुस्ती और सुस्ती मिटाई जा सकती है।
संतुलित और पौष्टिक भोजन करें, जिसमें हरी सब्जियां, दालें, दही और मौसमी फल शामिल हों।
अपनी उंगलियों के पोरों से चेहरे की मसाज करें। ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा, जिससे व्यक्ति एक्टिव महसूस करेगा।
भागदौड़ भरी आधुनिक जिंदगी और कई तरह के तनाव, न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को थका देते हैं। थकावट हर किसी को होती है परन्तु कई लोगों को पूरे शरीर में दर्द की शिकायत रहती है। दर्द को कम करने के लिए लोग अकसर पेनकिलर ले लेते हैं। ये दवाएं तुंरत आराम देती हैं परन्तु लम्बे समय तक इसका प्रयोग नुकसान पहुंचा सकता है।
आइए जानें थकावट से बचाव के लिए घरेलू नुस्खे (Home remedies for lethargyl) 

1. ग्रीन टी (Green tea)- थकावट को दूर करने के लिए एक कप ग्रीन टी पीना बेहद प्रभावी है। नियमित रूप से ग्रीन टी पीने से वजन भी कंट्रोल में रहता है। मांसपेशियों में दर्द (muscle pain) होने पर आप ग्रीन टी बेहद लाभकारी है।
2. अदरक की चाय (Ginger tea)- अदरक की चाय कुदरती पेनकिलर के रूप में कार्य करती है। यह व्यक्ति को तरोताजा भी महसूस कराती है। तुलसी के काढ़े में अदरक मिलाकर भी पीया जा सकता है।
3. सौंफ (Saunf)- किसी पकवान में स्वाद बढ़ाने के साथ ही सौंफ सांस में ताजग़ी लाने में भी बेहद प्रभावकारी है। सौंफ का प्रयोग रसोई में ज़रूर होता है। सौंफ खाने से पेट साफ़ रहता है और आप खुद को तरोताजा महसूस करते है।
4. अजवायन (Ajwain)- अजवायन के पत्ते भी दर्द निवारक दवा की तरह काम करते हैं। यह शरीर के टूटे-फुटे की अंग की मरम्मत करने और जोड़ों के दर्द में बहुत लाभप्रद होते हैं।
5. कद्दू के बीज (Pumpkin seed)- कद्दू के बीज में मैग्नीशियम होता है, जो आलस व थकावट से लड़ने में मदद करता है। आधे घंटे की एक्सरसाइज में अगर आप थका हुआ महसूस करती हैं तो इसका मतलब है कि आपमें मैग्नीशियम की कमी है। व्यायाम के दौरान शरीर में ऑक्सीजन के निर्माण के लिए मैग्नीशियम जरूरी है। इसकी कमी की वजह से थकावट जल्दी होती है।
6. अखरोट (Wallnut)- अखरोट में ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड न केवल थकान और आलस से राहत देता है, बल्कि यह अवसाद से भी बचाता है। इसलिए अखरोट खाने से आपकी झपकियों की समस्या दूर होगी।
7. अनाज (Whole grain)- अनाज में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसलिए आलस और थकान मिटाने में यह मददगार साबित होता है। अनाज में कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट (complex carbohydrate) होते हैं। ये थकान से लड़ने में मददगार होते हैं।
8. लाल मिर्च (Red chilly)- लाल मिर्च में विटामिन सी पाया जाता है, जो थकान दूर करता है। लाल मिर्च से दिमाग एक्टिव रहता है और हम हमेशा तरोताजा महसूस करते हैं।
9. दही (Curd)- दही में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया पाचन तंत्र (immune system) को मजबूत रखते हैं। 4 सप्ताह तक दिन में दो बार यदि दही खाया जाए तो शारीरिक और मानसिक सेहत के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है और थकान कम होती है।

Thursday, 21 June 2018

Summer Diet: Include Desi Ghee To Burn Belly Fat And Lose Weight Effectively


what makes ghee an amazing ingredient to lose weight and what is it that it has, which helps burn your belly fat, further giving you a flat tummy

It is a common perception that ghee or clarified butter is unhealthy and fattening, which can easily make you gain weight. Turns out, this may not be true. Pure homemade ghee, particularly made from cow's milk comes packed with essential nutrients that are required for a healthy body. Ghee is an excellent source of fat-soluble vitamins and healthy fatty acids that aid in weight loss. According to Nutritionist and Health Coach Shilpa Arora, once made, ghee contains practically no lactose and casein, making it suitable for people who cannot digest dairy. So what makes it an amazing ingredient to lose weight and what is it that it has, which helps burn your belly fat, further giving you a flat tummy.

Ghee for belly fat: Here's how it aids weight loss

Ghee, despite its reputation as an unhealthy kitchen ingredient is actually healthy if eaten in the right proportion. Here's how it helps people lose weight and burn belly fat:


Ghee is packed with essential amino acids that assist in mobilising the fat and making the fat cells to shrink in size. So, if you think your body is accumulating fat quickly, consider adding ghee to your weight loss diet.

Ghee contains conjugated linoleic acid, which is a type of omega-6 fatty acids, which when consumed aids in weight loss.

Omega-6 fatty acids can also help increase lean body mass and reduce fat mass, which in turn aids weight loss.
Similarly, the omega-3 fatty acids in ghee also help you lose inches and shed body fat.


Moreover, ghee comes packed with a range of benefits, ranging from improving digestion to preventing inflammation, which can further help you lose weight.
While ghee may be a great ingredient that may help you lose weight, you should understand that anything in excess is bad. Despite its health benefits and benefits for weight loss, ghee should be taken in moderation, considering it is high in saturated fats. It is okay to take one to two teaspoons of ghee every day in order to yield maximum benefits.


So, use ghee for burning belly fat and ensure shedding some kilos; don't forget to add a healthy diet and engage in exercises to lose weight in a healthy way.

Amla Tea For Weight Loss: How To Make This Ayurvedic Drink For Fat Burn



Highlights

1-Amla or Indian gooseberry is well known for its numerous health benefits

2-Amla contains the chromium which regulates blood glucose levels

2-Amla tea is the perfect for anyone wanting to slim down naturally

Amla, or the Indian gooseberry, is well known for its numerous health benefits. The green fruit is packed with nutrients and healing properties, due to which they find extensive use in the ancient Indian practice of Ayurveda as well. Amla, both in the fruit and powder form, finds its way into a number of our home remedies for common health as well as beauty problems. Amla is also a powerful ingredient to add to your weight loss diet. Amla juice is known to be one of the best Indian juices to consume for quick fat burn and weight loss. However, there's another powerful drink that you can easily make at home and incorporate into your diet regime - amla tea.
Amla is well known for its numerous health benefits

The sour and pungent fruit of amla is loaded with vitamin C, iron and calcium and hence, is great for the skin, hair and overall health. Moreover, it is even good for universal daily consumption, as its nature transcends the boundaries of season and body type. This is why amla tea is the perfect concoction for anyone wanting to slim down naturally. Made by boiling amla powder and ginger in water, amla tea is an all-season tea, which can be prepared and stored for everyday consumption.

Here Are Some Remarkable Benefits Of Amla, Which Make It Great For Weight Loss:
1.Rich In Antioxidants:Amla powder, which is used in making amla tea, is chock-full of antioxidants that fights inflammation. Research has time and again indicated a direct link of weight gain with inflammation.

2.Boosts Digestion:Amla powder is rich in fibre, which makes it great for boosting digestion. A healthy gut and digestion system is great for an effective weight loss.

3.Regulates Blood Sugar:Amla contains the element chromium, which effectively regulates blood glucose levels. Consuming amla may hence, prevent any sudden spikes or falls in blood sugar, thus preventing diabetes and causing weight gain.

4.Boosts Metabolism: A good metabolism is able to burn more calories effectively and amla may aide the process of increasing metabolism. It also detoxifies the body, by flushing out toxins from it.

5.Boosts Energy:Amla may speed up the process of protein synthesis, thus providing an energy boost to the body. This helps you stay focused and allows you to workout better and burn more calories.
Amla tea is the perfect concoction for anyone wanting to slim down naturally


How To Make Amla Tea For Weight LossComing to amla tea, the recipe for the drink is extremely easy to follow and the drink is ready in mere minutes. All you need for the drink is one and one-fourth cups water, just a teaspoon of coarse dried amla powder and some freshly crushed ginger. Add the amla powder and ginger to the water in a vessel and put it on a medium-flame. Let the concoction simmer for some time and take it off the heat once it comes to a boil and the water in it has reduced to one cup. Strain the drink into another vessel to filter out the sediments of amla and ginger and let it cool down a bit. Add some organic honey to the drink if you want to add sweetness to it and enjoy!

You may want to keep away from the honey if you are a diabetes patient. This amla tea can be consumed twice a day to quicken fat burn and weight loss.

Tuesday, 19 June 2018

कान में संक्रमण (Ear Infection)


कान में संक्रमण (Ear Infection )

कान शरीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंगों में से एक हैं। शरीर का यह एक ऐसा हिस्सा है जिसका ध्यान इंसान सबसे कम रखता है। कान में संक्रमण अकसर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण (Bacterial Viral Infection) के कारण होता है जो कि मध्य कान को प्रभावित करता है  जिसमें छोटी हड्डियों की पहाड़ी बनी होती है। इसी में कान के परदे के पीछे हवा से भरी जगह होती है।

बड़ों की तुलना में बच्चों में कान का संक्रमण तेजी से होता है क्योंकि बच्चों के कानों की सफाई बेहद कम होती है। बच्चों के कान अधिक संवेदनशील और ज्यादा जल्दी गंदे हो जाते हैं। संक्रमण होने पर कान तो अपना कार्य शांतिपूर्वक करते रहते हैं लेकिन जब इनमें पीड़ा होती है तो वह भी असहनीय होती है।

कान के संक्रमण के प्रकार (Types of Ear Infection)
कान को तीन भागों बाहरी कान, मध्य कान और भीतरी कान में बांटा गया है। संक्रमण कान के किसी भी हिस्से में हो सकता है। मुख्य तौर पर होने वाले तीन संक्रमण निम्न हैं: 

1. बाहरी कान में संक्रमण (external ear infection)- बाहरी कान का संक्रमण आमतौर पर बाहरी कान तक ही सीमित होता है और यह बैक्टीरियल या फंगल के कारण होता है। बाहरी कान में संक्रमण के कुछ आम कारण हैं:

वैक्स संचय (Wax Accumulation): कान में कुछ वैक्स प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन समय के साथ यदि यही वैक्स बढ़ती जाए तो बैक्टीरिया और कवक के बढ़ने का स्थान बन जाती है, जहां आसानी से बैक्टीरिया बढ़ने लगते है, इस स्थिति को ग्रेन्युलोमा कहते हैं। ऐसे में कान में दर्द होता है और कान से पानी निकलने लगता है।

ओटिटिस एक्सटर्ना (Otitice externa)- बाहरी कान का यह संक्रमण ज्यादातर तैराकों में होता है। कान में किसी प्रकार के द्रव्य जैसे पानी आदि चले जाने पर ओटिटिस एक्सटर्ना होता है। कान के अंदर पहले से ही मौजूद बैक्टीरिया को यह द्रव और भी सकारात्मक वातावरण देते हैं। कान के अंदर तरल प्रदार्थ चले जाने से कान की वैक्स फूलने लगती है जिससे संक्रमण होता है।

2.मध्य कान में संक्रमण (Middle Ear Infection)- यह संक्रमण भी ओटिटिस माध्यम से आता है जो ज्यादातर नाक या गले में सर्दी, जुकाम और खांसी के कारण होता है। गले और नाक में होने वाली एलर्जी कान को भी प्रभावित करती है। इस दौरान गले और नाक के बैक्टीरिया मध्य कान में पहुंच सकते हैं और संक्रमण पैदा कर सकते हैं। दूध पीने वाले बच्चों में कान का संक्रण तेजी से होता है क्योंकि दूध कई बार मुंह से निकलकर कान की ओर बह जाता है। मध्य कान में संक्रमण भी दो प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं:

एक्यूट या तेज मध्य कान संक्रमण (Acute Middle Ear Infection)- इसमें आमतौर पर तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है। यह संक्रमण छोटी अवधि का होता है जो कि थोड़ी देखभाल के बाद ठीक हो जाता है।

जीर्ण या क्रोनिक मध्य कान में संक्रमण (Chronic Middle Ear Infection)- यह संक्रमण हफ्तों या महीनों के लिए किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। कान के इस संक्रमण को कान के दर्द, कान से किसी भी तरह के रिसाव और चिड़चिड़ेपन से पहचाना जा सकता है। यह भी तीन प्रकार का होता है-
क) इस्टेशियन ट्यूब में द्रव भरा रहता है।
ख) कान के पर्दों में छेद
ग) कान हड्डियों में कटाव

3. आंतरिक कान संक्रमण (Internal Ear Infection)- आंतरिक कान संक्रमण अमूमन ज्यादा लोगों को नहीं होता। यह कभी-कभी वायरल के दौरान हो सकता है जिसमें रक्त के माध्यम से बैक्टीरिया कान में प्रवेश कर जाते हैं जो कि कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं। यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

कान में संक्रमण के लक्षण
कान में दर्द होना
चक्कर आना
सिर दर्द
बुखार
सुनाई कम देता है

कान में संक्रमण के कारण (Ear Infection Causes)
कान में संक्रमण कई जोखिमों को पैदा करता है। संक्रमण अगर ज्यादा अंदर नहीं गया हो तो कुछ मिनट के उपचार और प्रक्रियाओं के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि यह आंतरिक स्थान तक पहुंच गया है तब ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है। कान में संक्रमण होने के कारण पीड़ित को निम्न परेशानियां हो सकती है:

* सरदर्द: कान का दर्द अकसर सर में तनाव पैदा करता है।
* बुखार: कान में दर्द के कारण तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है।
* चक्कर आना: कान का दर्द कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं।
* सुनने की क्षमता: यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

सामान्य उपचार
कान के संक्रमण से बचने के लिए सबसे जरूरी है साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त कुछ निम्न बातें पर अमल कर भी कानों के संक्रमण से बचा जा सकता है।

वैक्स की सफाई (Cleaning of the wax)- कान में अतिरिक्त वैक्स कान में बैक्टीरिया को बढ़ाकर, कान में संक्रमण पैदा करती है। कान की वैक्स को चिकित्सकों द्वारा सूक्ष्म उपकरणों से साफ कराया जा सकता है। अमूमन लोग ईयर बड से भी कान की सफाई कर लेते हैं लेकिन यदि वेक्स ज्यादा है तो उसे ईयर बड से साफ नहीं किया जा सकता।

इयर ड्रॉप्स का प्रयोग (Use of Ear Drops)- कई दफा कान की दवा डालने से भी कान के संक्रमण से निजात मिल जाती है। चिकित्सक कान दर्द के लिए इयर ड्रॉप देते हैं जिससे कान के दर्द के साथ ही वैक्स भी निकल जाती है।

टिप्स- (Tips to Prevent Ear Infection)
- सर्दी जुकाम में अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद ही खाना-पीना खाएं।
- सर्दी जुकाम में बाहर जाने से बचें। भीड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।
- धूम्रपान से बचें।
- बच्चों में टीकाकरण समय से करवाएं। उन्हें न्यूमोकोकल टीके जरूर लगवाएं।

घरेलू उपाय- (Home Remedies)
1- कान में दर्द हो तो गैंदे के फूल को पीसकर उसका रस डालने से आराम होता है।
2- नमक को गरम करके उसे कपड़े में बांध कर कान की सिकाई करने से भी कान के दर्द से आराम मिलता है।
3- खाना बनाने वाले तेल में लहसुन डालकर तेल गरम करें। इस तेल की कुछ बूंदे तीन से चार बार कान में डालें।
4- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर कान के आस पास मलने से भी आराम होता है। ध्यान रहे रस को कान के अंदर नहीं डालना है।
5- सेब के सिरके में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रूई को उसमें भिगाएं। इस रूई को कान के पीछे कुछ देर लगाकर रखें।
6- ऑलिव ऑयल को गरम करके, गुनगुने तेल की कुछ बूंदे कान में डालें।
7- गर्म पानी की बोतल से कान की सिकाई करें।
8- प्याज को गरम करके उसे मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें। प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में डालें।

आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)


आंखों का इंफेक्शन (Eye Infection)

आंखों में इंफेक्शन हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। ये हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु मानसून के महीने में सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। ये आंखों की ऊपरी भाग, पुतली, कॉर्निया और पलकों पर आक्रमण करते हैं जिससे आंखों में सूजन, जलन होती है। आंख जरुरत से ज्यादा लाल हो जाती है और आंखों से जरुरत से ज्यादा पानी का डिस्चार्ज होने लगता है।

आंखें ज्यादा लाल दिखती हैं और उनमें सूजन या जलन है, तो इसे नजरअंदाज नहीं करें। आंखों के विशेषज्ञ से सलाह लेकर दवाई लें। आंखों के इंफेक्शन (Types of Eye Infection) दो तरह के होते हैं एक “कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) और दूसरा कॉर्नियल अल्सर (Corneal Ulcer)। कॉर्नियल अल्सर गंभीर इंफेक्शन होता है। कॉर्निया खुले जख्म को विकसित करता है और अगर गलत तरीके से इसका उपचार किया जाए, तो इससे अंधापन भी हो सकता है। कॉर्नियल अल्सर होने पर बहुत ज़्यादा दर्द होता है, पीप या मवाद निकलता है और दृष्टि धुंधली हो जाती है। ऐसा होने पर नेत्र-विशेषज्ञ को दिखाना जरूरी होता है और ऐसे में इलाज के लिए किसी भी तरह से देरी नहीं करनी चाहिए।

आंखों के इंफेक्शन के प्रकार (Types of Eye Infection)  
आंखों के संक्रमण कई तरह के होते हैं जिसे आप लक्षण से पहचान नहीं सकते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ ही इसकी जांच कर सही इलाज करते हैं। इंफेक्शन वायरल भी हो सकता है या फिर बैक्टीरियल और फंगल भी।

कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis)
वाइरल केराटिटीस (viral keratitis)
फंगल केराटिटीस (Fungal keratitis)
ट्राकोमा (Trachoma)
इंडोफ्थेलामिटीस (Endophthalmitis)
आंखों का इंफेक्शन के लक्षण
आंखों से पानी निकलना
आंखों से मवाद निकलना
धुंधला विजन
आंखों का सूख जाना
पलकों पर सूजन
आंखों में खूजलाहट
आंखों में दर्द और जलन
आंखे लाल होना

आंखों के इंफेक्शन के कारण (Causes and Reasons of Eye Infection)
आंखों के इंफेक्शन से सबसे ज्यादा आंखों की पलकें प्रभावित होती है। पलकों के अंदरुनी हिस्से में सूजन होने से आंखों की सुंदरता तो खत्म होती ही है, समय पर इलाज नहीं कराने से घाव होने का भी खतरा रहता है। इंफेक्शन जब आंखों के अंदर आंसू की ग्रंथि को प्रभावित करता है तो सूजन से आंसू की ग्रंथि बंद हो जाती है और यह काफी दर्द करने लगता है। सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति तब होती है जब इंफेक्शन कॉर्निया को प्रभावित करती है। इसमें कॉर्नियल अल्सर का खतरा रहता है और आंखों की रोशनी तक चली जाती है।

कंजेक्टिवाइटिस (Conjunctivitis)- कंजेक्टिवाइटिस आंखों का सबसे कॉमन इंफेक्शन है जिसे पिंक आई भी कहते हैं। यह एक वायरल इंफेक्शन है जो काफी तेजी से फैलता है। अगर मां को इसका इंफेक्शन है तो नवजात को भी यह इंफेक्शन हो सकता है।

वाइरल केराटिटीस (viral keratitis)- पिंक आई की तरह यह भी एक क़ॉमन आई इंफेक्शन है जो हर्पिस के वायरस (Herpes simplex virus) के कारण होता है। यह भी काफी तेजी से फैलता है।

फंगल केराटिटीस (Fungal keratitis)- यह एक फंगल इंफेक्शन है जो आंखों में कांटेक्ट लैंस लगाने से हो सकता है। 2006 में यह इंफेक्शन उस समय चर्चा में आया था जब एक खास तरह के कांटेक्ट लैंस सोल्यूशन के इस्तेमाल से काफी लोग इस इंफेक्शन के शिकार हो गए थे। वैसे आंखों में फंगल इंफेक्शन किसी भी तरह के चोट से या फिर ऑर्गेनिक मैटर के जाने से होता है।

ट्राकोमा (Trachoma)- यह इंफेक्शन काफी गंभीर होता है और गन्दी जगह में तेजी से फैलता है। गंदगी पर पनपने वाले मक्खियों और कीड़ों के आंख में घुसने से यह इंफेक्शन होता है। ट्राकोमा आंखों के नीचे वाले पलक को संक्रमित करता है, अगर यह लंबे समय तक रहा तो कॉर्निया तक में घाव होने तक का खतरा रहता है जिससे मरीज हमेशा के लिए अंधा हो सकता है।

इंडोफ्थेलामिटीस (Endophthalmitis)- जब आंखों का इंफेक्शन आंख के अंदर काफी गहरे तक असर डाल देता है तो उसे इंडोफ्थेलामिटीस कहते हैं। यह वायरल और बैक्टेरियल दोनों तरह के संक्रमण से होता है। आंखों में गहरी चोट लगने से भी इसका खतरा रहता है।

सामान्य उपचार

देखभाल और इलाज (Care and Treatment of Eye Infection)
आंखों के इंफेक्शन का इलाज अब काफी सरल और आसान हो गया है। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप, मलहम और सेंक से कई तरह के संक्रमण का सही तरीके से इलाज हो जाता है। कई तरह के वायरल इंफेक्शन कुछ दिनों तक रहने के बाद खुद ही ठीक हो जाता है तो गंभीर इंफेक्शन होने पर डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है।

आंखों की देखभाल के सामान्य उपचार- (Tips to Prevent Eye infection)
-त्रिफला जल से आंखों को धोते रहें, काफी काम करेगा।
-इमली के बीज को चंदन की तरह पीसकर आंखों की पलकों पर लेप लगाने से काफी राहत मिलती है।
-सुबह उठते ही मुंह में ठंडा पानी भरकर मुंह फुलाकर ठंडे जल से आंखों पर छींटे मारें। ऐसा दिन में तीन बार करें। यह आंखों के इंफेक्शन के लिए काफी असरदार है।
-सफेद प्याज के रस में शहद और कर्पूर मिलाकर शीशी में रख लें और इसे रात में सोते समय आंखों में डालें। आंखों के सभी तरह के इंफेक्शन में यह काफी कारगर इलाज है।
-दो रत्ती फिटकरी को बारीक पीसकर गुलाब जल में घोलकर रख लें। इस नेचुरल आई ड्रॉप की दो-दो बूंद दिन में तीन बार आंखों में डालें। यह सभी तरह के इंफेक्शन में कारगर होता है। आंख का सूजन, लाली को कम करता है और आंखों में कीच और मवाद का आना बंद हो जाता है।

अन्य टिप्स- (Other Tips to prevent Eye Infection)
-जिसकी आंखे लाल हैं उनके सामने जाने से बचें। अगर उनके सामने गए हैं तो आंखों में आंख डाल कर बात नहीं करें। उनसे मिलने के बाद तुरंत आँखों साबुन से हाथ धोएं और फिर आँखों को ठंडे पानी से धोएं।

-कंजेक्टिवाइटिस (conjunctivitis) के समय स्कूल, ऑफिस और सार्वजनिक जगहों पर एंटी वाइरल स्प्रे का छिड़काव बार-बार करते रहना चाहिए।

-अगर आप कांटेक्ट लैंस लगाते हैं तो अपने आंखों को छूने से पहले हाथों को अच्छे तरह से साफ कर लें।

-पीड़ित व्यक्ति से दूर रहें और उसका तौलिया, रुमाल, बेड, तकिया को हमेशा एंटी-सेप्टिक लिक्विड से साफ-सुथरा रखें।

आई इंफेक्शन के घरेलू उपाय (Home Remedies For Eye Infection)
आँख में होने वाला इंफेक्शन, गंदे हाथों से आँख को मसलने से, प्रदूषण से, किसी दूसरे के द्वारा इस्तेमाल किए गए काजल लगाने या चश्मा पहनने से तथा आंखों की अच्छी प्रकार सफाई न करने से होता है

जानिए आई इंफेक्शन से निजात पाने के घरेलू उपाय (Home remedies for eye infection):

1. गर्म पानी (Hot Water)- हल्के गर्म पानी के इस्तेमाल से आँख को धोएं, इससे आँखों के ऊपर जमने वाली गंदगी हट जाती है। इसके बाद रुई की मदद से आँखों को पोछें।

2. गुलाब जल (Rose Water)- गुलाब जल से आँख को धोने से आँखों का इंफेक्शन कम हो जाता है। दो बूंद गुलाब जल आँखों में डालें। इस उपाय को रोजाना दिन में दो बार करें।

3. पालक और गाजर का रस (Spinach & Carrot Juice)- पालक और गाजर का रस आँखों के संक्रमण के लिए काफी लाभदायक होता है क्योंकि इनमे पाए जाने वाले विटामिन आँखों के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। पालक के 4 या 5 पत्तों को पीसकर उसका रस निचोड़ लें। 2 गाजर को भी पीसकर रस निकाल लें। एक गिलास में आधा कप पानी लें और उसमें गाजर और पालक के रस को मिला कर पीएं। ऐसा रोजाना करने से आंख का संक्रमण कम होने लगता है।

4. आंवले का रस (Aamla juice)- आँखों में संक्रमण होने पर आंवले का रस पीने से बहुत लाभ मिलता है। 3 से 4 आंवले के फल को पीस कर उसका रस निकाल लें। एक गिलास पानी में उस रस को मिला कर पीएं। आंवले के रस को सुबह खाली पेट और रात में सोने से पहले दिन में दो बार इस्तेमाल करें। कुछ ही दिनों में आंखों का इंफेक्शन दूर हो जाएगा।

5. शहद और पानी (Honey and Water)- शहद से आँखों को धोना चाहिए। इससे आंखों को बेहद लाभ पहुंचता है। एक गिलास पानी में 2 चम्मच मधुरस को मिलाकर खुली आँखों में छपके मारें। ऐसा करने से आंखों का संक्रमण दूर होगा और आंखों की गंदगी भी साफ होगी।

6. हल्दी और गर्म पानी (Turmeric and Water)- गर्म पानी में हल्दी को मिलाकर रुई से आँखों को पोंछना चाहिए। हल्दी प्राकृतिक रूप से एंटी बैक्टीरियल और एंटी सेप्टिक गुणों से भरपूर होती है। यह आंखों की सफाई भी करती है और संक्रमण से भी दूर रखती है।

7. आलू (Potato)- आलू में प्रचुर मात्रा में स्टार्च होता है, जिसके इस्तेमाल से आँखों के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। आलू को पतले- पतले टुकड़ों में काट लें। रात में सोने से पहले उस कटे हुए आलू को 15 मिनट तक अपनी आँखों के ऊपर लगा कर रखें और बाद उसे उतार दें।

थकान (Fatigue)

थकान (Fatigue) थकान एक सामान्य अवस्था है, अधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करने से शरीर में थकान आ जाती है और शरीर सुस्त हो जाता है। थ...