Tuesday 8 May 2018

दमा (Asthma)

विवरण-
सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाने के कारण जब किसी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है तब यह स्थिति दमा रोग कहलाती है, इस रोग में व्यक्ति को खांसी की समस्या भी होती है।
दमा के लक्षण
अस्थमा कई कारणों से होता है कई बार यह जेनेटिक तो कई बार आनुवांशिक भी हो सकता है। कई अन्य कारण निम्न हैं: 
  • औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ़ सूख जाने से दमा हो जाता है।
  • खान-पान के गलत तरीके से यह रोग हो सकता है।
  • मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा होने का एक कारण है।
  • खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा हो सकता है।
  • नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करना भी इस रोग का कारण है।
  • खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा हो सकता है।
  • भूख से अधिक भोजन खाने से दमा हो सकता है।
  • मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से यह रोग हो सकता है।
  • फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी, स्नायुमण्डल में कमजोरी तथा नाकड़ा रोग हो जाने के कारण दमा हो जाता है।
  • मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण भी दमा हो सकता है।
  • धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही अन्य पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण यह रोग हो सकता है।
  • मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा हो सकता है।
  • मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से यह रोग हो सकता है।
  • गर्द, धुआं, गंदगी, बदबू, गंदे बिस्तर, पुरानी किताबें और कपड़ों की झाड़, खेतों की झाड़, सख्त सर्दी, बरसात, जुकाम, फ्लू, आदि सूक्ष्म कणों का सांस द्वारा फेफड़ों में जाने से दमा हो सकता है।
  • वातावरण में प्रदूषण से होने वाली एलर्जी
  • इसके अलावा कई लोगों में कुछ निश्चित दवाओं (एस्पिरीन और बेटा- ब्लॉकर्स) के सेवन से भी दमा के रिस्क फैक्टर्स बढ़ सकते हैं।
  • अत्यधिक भावनात्मक अभिव्यक्तियां (जैसे चीखने-चिल्लाने या फिर जोरदार तरीके से हंसना भी) भी कुछ लोगों में दमा की समस्या को बढ़ाकर दौरे की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।
  • अस्थमा या एलर्जी का पारिवारिक इतिहास (आनिवांशिक दमा)
  • जन्म के समय कम वजन और समय से पहले बच्चों का जन्म, जन्म के पहले और / या जन्म के बाद तंबाकू के धुएं के संपर्क
  • भीड़, वायुप्रदूषण, धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड्स, तनाव व चिंता, पालतू जानवर के संपर्क में रहना और पेड़-पौधों और फूलों के परागकणों (पौधे के फूलों में पाये जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं) आदि को शामिल किया जाता है।

सामान्य उपचार


अस्थमा से बचाव (Prevention and Treatment of Asthma In Hindi)
अस्थमा के रोगी को विपरीत माहौल में बेहद संभल कर रहना चाहिए। मौसम बदलते समय अपना अच्छे से ख्याल रखना चाहिए। इसके साथ ही कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जैसे: 
  • रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए। 
  • धूम्रपान नहीं करना चाहिए। 
  • भोजन में मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए। 
  • मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगडों से बचना चाहिए। 
  • शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। 

दमा का होमियोपैथी उपचार (Asthma Homeopathy Treatment)


होम्योपैथी चिकित्सा की सबसे लोकप्रिय समग्र प्रणालियों ((Holistic Pathy) में से एक है होम्योपैथी में इलाज के लिए दवाओं का चयन व्यक्तिगत लक्षणों पर आधारित होता है। यही एक तरीका है जिसके माधयम से रोगी के सब विकारों को दूर कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। होम्योपैथी का उद्देश्य एलर्जिक अस्थमा (Allergic Asthma) होने वाले कारणों का सर्वमूल नाश करना है न की केवल एलर्जी का जहां तक चिकित्सा सम्बन्धी उपाय की बात है तो होमियोपैथी में एलर्जिक अस्थमा के लिए अनेकदवाइयां उपलब्ध हैं। व्यतिगत इलाज़ के लिए एक योग्य होम्योपैथिक (qualified homeopathic) डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
यह कुछ होम्योपैथिक दवाइयां है जो एलर्जिक अस्थमा (Allergic asthma) के उपचार में काफी लाभकारी होती है:
  • एलियम सीपा(Allium Cepa),
  • अयोडियम (Iodium),
  • थूजा (Thuja),
  • डलकेमारा (Dulcamara),
  • कार्बो वेज़ (Carbo Veg)

दमा का आयुर्वेद उपचार (Ayurveda Treatment Of Asthma)

  • आयुर्वेदिक दवाएं बहुत सुरक्षित हैं और काफी हद तक समस्या का इलाज है। कुछ आम दवाओं कंटकारी अवालेह, अगस्त्याप्रश, चित्रक, कनाकसव का प्रयोग किया जा सकता है। 
  • रात का खाना हल्का व सोने से एक घंटे पहले लें।
  • सुबह या शाम टहलें और योग में मुख्य रूप से ‘प्राणायाम’ और भावातीत ध्यान करें।
  • अधिक व्यायाम से बचे।
  • हवादार कमरे में रहें और सोएं। एयर कंडीशनर, कूलर और पंखों की सीधी हवा से बचें।
  • ठंडे और नम स्थानों से दूर रहें।
  • धूम्रपान चबाने वाली तम्बाकू, शराब और कृत्रिम मिठास और ठंडे पेय न लें। जिन्हें इत्र से इलर्जी हैं, वे अगरबत्ती, मच्छर रेपेलेंट्स का प्रयोग न करें।
  • 2/3 गाजर का रस, 1/3 पालक का रस, एक गिलास रोज पिएं।
  • जौं, कुल्थी, बथुआ, द्रम स्तिच्क अदरक, करेला, लहसुन का अस्थमा में नियमित रूप से सेवन किया जा सकता है।
  • मूलेठी और अदरक 1/2-1/2 चम्मच एक कप पानी में लेना बहुत उपयोगी होता है।
  • तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
  • जो लोग इस रोग की चपेट में आ चुके हैं, उनके लिए हर ऋतु के प्रारम्भ में एक-एक सप्ताह तक पंचकर्म की नस्य या शिरोविरेचन चिकित्सा इस रोग की रोकथाम में सहायक होती है।
  • दिल्ली के शालीमार बाग स्थित महर्षि आयुर्वेद अस्पताल में इसकी अच्छी व्यवस्था है।
  • रात-विरात यदि दमा प्रकुपित हो जाए, तो छाती और पीठ पर गर्म तिल तेल का सेंक करें।
  • घर में एक शीशी प्राणधारा की अवश्य रखें। उसमें अजवाइन का सत् होता है, जिसकी भाप दमा के दौरे में राहत देती है।
  • 1/4 चम्मच सोंठ, छ: काली मिर्च, काला नमक 1/4 चम्मच, तुलसी की 5 पत्तियों को पानी में उबाल कर पीने से भी दमा में आराम मिलता है।
  • 1/4 प्याज का रस, शहद एक चम्मच, काली मिर्च 1/8 चम्मच को पानी के साथ लें।

आयुर्वेद के अनुसार दमा से बचाव का उपाय (Ayurvedic Treatment For Asthma)

अस्थमा के रोगियों को अस्थमा का दौरा कभी भी आ सकता है। यह जानलेवा भी हो सकता है। ऐसे में इससे बचने के उपायों की जानकारी होना बेहद आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा से बचने के कुछ आसान उपाय निम्न हैं
  1. किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचें।
  2. झींकते, खांसते समय रुमाल का प्रयोग करें।
  3. धूल, धुंआ, रुई, जानवरों के पंख, बालों के सम्पर्क में आने से बचें।
  4. फूलों के परागकणों (फूलों में मौजूद तत्वों को) को सांस के साथ अंदर जाने से रोकें।
  5. सुगंधित या कृत्रिम रासायनिक द्रव्यों जैसे परफ्यूम, डियो आदि से परहेज करें।
  6. जुकाम या खांसी होने पर लापरवाही न बरतें, जल्द से जल्द उसका उपचार करें।
खान पान का रखें ध्यान (Diet in Asthma by Ayurveda)
आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा में खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए:
  1. हल्का और जल्दी पचने वाला भोजन जैसे मूंग, मसूर की दाल इत्यादि का सेवन करें।
  2. लहसुन, अदरक, मेथी, सोया, परवल, लौकी तरोई, टिंडे आदि का प्रयोग भोजन में अधिक से अधिक करें।
  3. अस्थमा के रोगी के लिए मोटे पिसे आटे की रोटियां, दलिये की खिचड़ी लाभदायक है।
  4. मुनक्का व खजूर का प्रयोग लाभदायक होता है।
  5. हमेशा पीने के लिए गर्म पानी का प्रयोग करेँ।

दमा का नेचुरोपैथी उपचार (Asthma Naturopathy Treatment)

दमा या अस्थमा (Asthma) एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है।श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती है। दमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन होता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करने वाली चीज़ के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है।
दमा का प्राकृतिक उपचार (Natural Cure for Asthma): दमा के प्राकृतिक उपचार में निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
ताजा फलों का रस: अपने शरीर की प्रणाली को पोषक तत्त्व प्रदान करने के लिए और हानिकारक तत्त्व बाहर निकालने के लिए रोगी को कुछ दिन तक ताज़े फलों का रस ही लेना चाहिए और कुछ नहीं। इस उपचार के दौरान उसे ताज़ा फलों के एक गिलास रस में उतना ही पानी मिलाकर दो-दो घंटे के बाद सुबह आठ बजे से शाम आठ बजे तक लेना चाहिए।तेज़ाब बनाने वाले पदार्थ सीमित मात्रा मेंरोगी के आहार में कार्बोहाइड्रेट चिकनाई एवं प्रोटीन जैसे तेज़ाब बनाने वाले पदार्थ सीमित मात्रा में रहें और ताजे फल, हरी सब्जियाँ तथा अंकुरित चने जैसे क्षारीय खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में रहें तो सबसे अच्छा रहता है।
कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ से बचें: चावल, शक्कर, तिल और दही जैसे कफ या बलगम बनाने वाले पदार्थ तथा तले हुए एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थ न ही खाएं।
कम और चबा-चबा कर खाना खाएं: अल्पाहार दमा के रोगियों को अपनी क्षमता से कम ही खाना चाहिए। उन्हें धीरे-धीरे और अपने भोजन को चबा-चबाकर खाना चाहिए। दमा, विशेषकर तेज़ दमे का दौरा, हाजमें को खराब करता है। ऐसे मामलों में रोगी पर खाने के लिए जोर मत दीजिए, ऐसे मामलों में जब तक दमे का दौरा दूर न हो जाए तब तक रोगी को लगभग उपवास करने दीजिए।
अत्यधिक पानी पीना चाहिए: दमा के रोगियों को प्रतिदिन कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीना चाहिए। भोजन के साथ पानी या किसी तरह का तरल पदार्थ लेने से परहेज करना चाहिए। रोगी हर दो घंटे के बाद एक प्याला गरम पानी पी सकता है। ऐसे मामले में यदि रोगी एनीमा लेता है तो उसे बहुत फायदा होता है।
मौसम से सावधान रहना चाहिए: बारिश के बाद सितंबर में धूल उड़ती है और बारिश के कीटाणुओं को फैलने पनपने का मौका मिल जाता है। वैसे भी वातावरणीय कारकों से फैल रही एलर्जी के कारण अस्थमा के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके साथ बदलती जीवनशैली और प्रदूषण के कारण भी अस्थमा और एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियां और घरेलू नुस्खे इसमें काफी राहत देते हैं।

दमा का घरेलू उपचार (Asthma Home Remedies)

  • लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
  • अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
  • अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है।
  • दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है।
  • 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
  • 180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
  • मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
  • एक पका केला छिलका लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़ा छान की हुई काली मिर्च भर दें। फिर उसे बगैर छीले ही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें। बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले। ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें।


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